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ऊंटनी का दूधः गुजरात में प्रयास शुरू, राजस्थान में केवल हो रही बातें

locationजयपुरPublished: Oct 19, 2020 09:24:39 pm

Submitted by:

Amit Pareek

गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फैडरेशन ने शुरू की कॉमर्शियल बिक्री, राज्य में ऊंटपालक गाय-भैंस के दूध में मिलाकर डेयरियों में भेज रहे इस ‘अमृत’ को
 

फाइल फोटो

फाइल फोटो

जयपुर. ऑटिज्म, मधुमेह समेत कई रोगों के उपचार में रामबाण साबित हो चुका ऊंटनी का दूध अब राज्यभर में मिलना शुरू हो गया है। गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फैडरेशन ने यहां इसकी व्यावसायिक स्तर पर बिक्री शुरू कर दी है और गुजरात से लाकर यहां बेच रही है। हैरत की बात है कि राजस्थान में रोजाना 9 हजार लीटर ऊंटनी का दूध मजबूरन गाय-भैंस के दूध में मिलाकर 25 से 30 रुपए प्रति लीटर में डेयरियों में भेजा जा रहा है। क्योंकि यहां आमजन तक ऊंटनी के दूध की आसानी से उपलब्धता और ऊंटपालकों को संबल देने का जिम्मा संभालने वाले अफसर मौज लूट रहे हैं। बढ़ावा तो दूर तीन साल पहले बजट घोषणा में स्वीकृत जयपुर में ऊंटनी के दूध प्रसंस्करण का मिनी प्लांट लगाने के लिए जगह भी नहीं खोज पाए हैं। यही वजह है कि यहां के ऊंटपालकों को रोजाना सरस व अन्य निजी डेयरियों में ऊंटनी के दूध को गाय-भैंस के दूध में मिलाकर कौडि़यों के दाम में बेचना पड़ रहा है। जबकि यहां से ऊंटनी का दूध मंगवाने के लिए लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक से गुहार लगा चुके हैं। पाली के सादड़ी, जोधपुर, जैसलमेर समेत कई जिलों में ऊंटपालकों ने ऊंटनी के दूध का प्लांट लगाकर दूध को बाहर भेजना शुरू किया है। वे अपने स्तर पर रोजाना 300 से 400 लीटर दूध जयपुर, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलूरु समेत कई शहरों में मरीजों व जरूरतमंद लोगों को पहुंचा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार जिलेवार डेयरी प्लांट या डेयरी बूथों पर दूध की आपूर्ति के इंतजाम करेे तो आमजन को दूध आसानी से मिल सकेगा और ऊंटपालकों को भी आर्थिक संबल मिलेगा।
ऊंटपालकों को राहत नहीं मिली
पाली जिलेे के सादड़ी में कैमल मिल्क डेयरी संचालित कर रहे हनुमंत सिंह राठौड़ का कहना है कि सरकारों ने ऊंटपालकों को राहत नहीं दी है। ऊंटों की संख्या भी कम हो गई है। संरक्षण के नाम पर दिखावा हो रहा है। ऊंटनी के दूध की आस जगी है लेकिन इसमें भी सरकार का कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। प्रचार-प्रसार की ज्यादा जरूरत है। डेयरी प्लांट खोले तो राहत मिलेगी।
सोशल मीडिया बना सहारा
ऊंटनी का दूध बेच रहे ऊंटपालक सोशल साइट्स के जरिए दूध भेज रहे हैं। कई ऊंटपालकों ने वेबसाइट भी बना रखी है तो बहुत से व्हाट्सऐप और फोन के जरिए ऑर्डर बुक करते हैं।
लॉकडाउन में पीएम से लगाई थी गुहार
लॉकडाउन में बेंगलूरु निवासी महिला को अपने ऑटिज्म पीड़ित बच्चे के लिए ऊंटनी का दूध मंगवाना पड़ा। इसके लिए उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट किया। इसके बाद अधिकारियों ने तुंरत कार्रवाई करते हुए अजमेर से मुंबई जा रही मालगाड़ी को फालना स्टेशन पर रूकवाकर पाली जिले के सादड़ी से दूध भिजवाया था।
यों बिगडी़ तस्वीर
डेयरी अफसरों की उदासीनता के कारण ऊंटनी का दूध सरस डेयरी के उत्पादों में शामिल नहीं हो सका। इस कारण यह आमजन की पहुंच से दूर है। इधर सरस व निजी डेयरी में वह 25 से 30 रुपए प्रति लीटर तो ऊंटपालकों की डेयरियों पर 60 रुपए प्रति लीटर तक खरीद रहे हैं।
ऊंटनी का दूध ऑटिज्म समेत कई रोगों में चमत्कारी होने के साथ ही इम्यूनिटी बढ़ाने में भी उपयोगी है। हाल ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से बातचीत कर इसकी उपयोगिता बताई और इसके लिए जल्द ही ठोस कदम उठाने की मांग की है। पिछली सरकार ने इसके लिए प्रयास भी किए लेकिन संबंधित फाइलें आगे नहीं बढ़ पाई। अफसर जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।
गोवर्धन राईका, पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान पशुपालन बोर्ड
फैक्ट फाइल
9 हजार लीटर से ज्यादा ऊंटनी के दूध का रोजाना हो रहा उत्पादन।
300 लीटर से ज्यादा दूध राजस्थान से बाहर भेज रहे ऊंटपालक।
250 से 300 रुपए प्रति लीटर के भाव में बिक रहा ऊंटनी का दूध।

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