बुलंदशहर बलात्कार कांड की पीडि़ता के पिता ने आजम खान की इस टिप्पणी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। अगस्त 2016 में तत्कालीन जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न विचार के लिए तैयार किए। हालांकि इस दौरान आजम ने माफी मांग ली। पीठ ने माफी को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन कुछ प्रश्नों को विचार के लिए संविधान पीठ को भेज दिया।
क्या नागरिकों की रक्षा व कानून-व्यवस्था के लिए जिमेदार ‘राज्यÓ को ऐसी टिप्पणियों की अनुमति देनी चाहिए, जो निष्पक्ष जांच और पूरी व्यवस्था को लेकर पीडि़त के मन में अविश्वास पैदा करे?
क्या इस तरह के बयान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आते हैं या स्वीकृत दायरे की सीमा से बाहर हैं?
क्या ऐसी टिप्पणियां (जो खुद के बचाव में नहीं की गईं) संवैधानिक करुणा और संवेदशीलता की अवधारणा के खिलाफ नहीं?
क्त क्या संविधान के अनुच्छेद 75 (3) और अनुच्छेद 164 (2) के तहत सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के तहत किसी मंत्री के ऐसे बयान को सरकार का ही बयान माना जा सकता है?
क्त क्या मंत्री या व्यापक संदर्भ में सरकार के किसी प्राधिकारी का ऐसा बयान संविधान के भाग तीन में प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है? ऐसे में क्या इस तरह के बयान पर कार्रवाई होनी चाहिए?