-कार्रवाई के लिए सचिव स्तर का अधिकारी ही नियुक्त होगा।
– कार्रवाई में सहयोग के लिए मुख्यालय के अतिरिक्त रजिस्ट्रार (बैंकिंग), खंडीय रजिस्ट्रार (संभाग स्तर पर तैनात अति. रजिस्ट्रार) तथा जिले में डिप्टी रजिस्ट्रार की नियुक्ति।
-अधिकारी को सिविल कोर्ट के सामान अधिकार दिए गए हैं।
-प्राधिकृत अधिकारी संदेह होने पर अनाधिकृत रूप से लोगों की जमा एकत्र करने वाली संस्था के बैंक खाते व प्रॉपर्टी सीज करेगा।
– पड़ताल व निरीक्षण के लिए संदिग्ध समिति या संस्था संचालकों को समन जारी कर तलब कर सकता है।
-कानून की धारा 4 व 5 के तहत जो कार्रवाई करेंगे वह आइपीसी की धारा 193 व 228 के समान न्यायिक कार्रवाई होगी।
सरकार के बकाया से पहले पीडि़तों का हक
-आरोपियों से जब्त रुपयों पर सरकार के टैक्स या अन्य बकाया से पहले प्राथमिकता पीडि़त लोगों की रहेगी।
-आरोपियों से प्राधिकृत अधिकारी जो रुपए जब्त करेगा उसे अलग खाते में जमा कराने होंगे।
-रुपये व आरोपियों की जब्त संपत्ति सबंधी कोई भी निर्णय अधिकारी सबंधित कोर्ट के निर्देशानुसार करेगा।
-कोर्ट मामले का निस्तारण अधिकतम 180 दिन में करेगी।
-आरोपी के प्रॉपर्टी हस्तानांतरण करने की स्थिति में उस प्रॉपर्टी को अभी अटैच किया जाएगा।
इस एक्ट में सजा के भी कठोर प्रावधान किए गए हैं। एक्ट की विभिन्न धाराओं में एक से दस साल तक की सजा का प्रावधान है। यही नहीं इसके अलावा जमाओं की दो गुना रकम तक के जुर्माने का भी प्रावधान है। रिपेमेंट में डिफाल्टर होने पर सात साल की कैद तथा 25 करोड़ रुपए के जुर्माने या जमा से कमाए गए लाभ का तीन गुना राशि (दोनों में से जो अधिक हो) का प्रावधान है।