देश जानता है अलगाववादी कौन: केंद्र
जयपुरPublished: Jan 23, 2020 01:58:15 am
सुप्रीम कोर्ट: अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने पर सुनवाई जारी
देश जानता है अलगाववादी कौन: केंद्र
नई दिल्ली.
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने व दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभक्त करने के मामले में दायर याचिकाओं पर बुधवार को भी सुनवाई जारी रही। 5 जजों की पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देश जानता है कि कश्मीर में अलगाववादी कौन हैं? याचिकाकर्ताओं के वकील जफर अहमद शाह ने कहा कि जिन्हें अलगाववादी बताया जा रहा है वे कश्मीर में जनमत संग्रह के पक्षधर हैं। जस्टिस एसके कौल ने कहा कि सभी पक्ष विचार रख सकते हैं। बहस के दौरान वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा ऐसे तर्क मामले को बेहतर परिपे्रक्ष्य प्रदान करेंगे। सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। जजों के सवाल और पारेख के जवाब : जस्टिस एसके कौल: क्या 370 निष्प्रभावी करने से पहले और बाद में जो कुछ हुआ वह शून्य था?जस्टिस एनवी रमन्ना: आपके (पारेख) अनुसार जम्मू-कश्मीर के संविधान के लागू होने के बाद पारित हर आदेश शून्य है? जस्टिस कौल: इस तर्क पर सवालिया निशान है। पारेख: कानूनन संविधान के अनुसार ऐसे कदम को मंजूरी दी जानी थी। जमू-कश्मीर के लिए शासन के मामलों में राज्य की सहमति सर्वोपरि है।
संप्रभुता शब्द पर गौर करे पीठ: पारेख
वरिष्ठ वकील संजय पारेख ने कहा, पीठ को ‘संप्रभुताÓ शब्द पर गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा, 17 अक्टूबर 1949 को सरदार पटेल-अय्यंगार के बयानों में माना था कि शासन मामलों में कश्मीर सरकार के परामर्श के बाद ही फैसला लागू हो। 370 का संशोधन केवल संविधान सभा ही कर सकती थी।
शाह-अटॉर्नी जनरल के बीच बहस
जफर शाह: पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 संबंधी आदेश जारी कर जम्मू-कश्मीर को पिछड़ा राज्य बताना एक प्रकार से संवैधानिक धोखा था।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल: संवैधानिक धोखा बताना गलत है।
जफर शाह: ये संवैधानिक धोखा ही है। केंद्र सरकार के हर आदेश में उल्लेख किया गया है।
जफर शाह: जमू-कश्मीर के लोगों को भूमि, विवाह संबंधी विशेष अधिकार राजशाही के दौरान मिले थे।
जफर शाह: जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार राज्य को कानून बनाने के अधिकार हैं।
जफर शाह: 26 अक्टूबर, 1947 में तत्कालीन महाराजा ने जनमत संग्रह को विलय-पत्र की शर्तों में शामिल किया था। केवल विलय पत्र से ही अभिन्न अंग: सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील जफर अहमद शाह ने तर्क दिया कि इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेस (विलय पत्र) के अनुसार ही जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। लेकिन यहां ये बात स्पष्ट है कि राज्य विधानसभा के पास शासन के असीमित अधिकार नहीं हैं। विलय के दौरान जम्मू-कश्मीर को छोड़कर अन्य सभी तत्कालीन राज्यों का भारत में पूरी तरह से विलय हो गया था। इस पर सरकारी पक्ष के वकीलों ने कहा कि विलय पत्र के बारे में तर्क दिया जाना सामयिक नहीं है। इस पर जस्टिस कौल ने शाह को कहा कि मामले से जुड़े तथ्यों को ही पेश किया जाए।