नाटक में दर्शाया गया है चक्रव्यूह केवल एक युद्ध शिल्प तक ही सीमित नहीं है। यह सम्पूर्ण जीवन दर्शन के स्तर को समझने के लिए बाध्य करता है। नाटक में कुरुक्षेत्र की रक्त-रंजित धरती को सम्बोधित करते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि आने वाले युगों में कुरुक्षेत्र की धरती को उन सभी अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देना होगा जो भावी पीढियां उनसे पूछने वाली है। कल सुबह महाभारत के युद्ध का 13 दिन होगा। निराषा, कुंठा और स्याह रात की कालिमा से ग्रसित कौरव शिविर में आने वाली सुबह के युद्ध में पाण्डवों को परास्त करने के लिए चक्रव्यूह बनाने की योजना रची जाती है।
नाटक में दर्शाया की सूर्योदय के साथ युद्ध पुनः आरंभ होने को है। महान धनुर्धर अर्जुन की उपस्थिति में जहां एक ओर वीर अभिमन्यू युद्ध में मैदान को तत्पर है, वहीं दूसरी ओर अभिमन्यू की पत्नी, पति अभिमन्यू को अपने गर्भ में पल रहे शिशु की दुआई देते हुए प्रार्थना करती है कि वे महाभारत के भीषण युद्ध से विजयी होकर सुरक्षित लौट आएं। अभिमन्यू युद्ध में चक्रव्यूह भेदने को प्रस्थान करता है जहां वह वीरगति को प्राप्त हो जाता है। समूचा पाण्डव शिविर आत र्नाद और चीत्कार सहित रात के गहरे भयावह अंधकार में डूब जाता है। शोक के महासागर में डूबे धर्मराज युधिष्ठिर, पितामह भीष्म से मिलने उनके शिविर में जाते है और उन्हे युद्ध में हुए नियम विरूद्ध घटनाक्रम का शब्दशः हाल सुनाते है।
उत्तरा, अजुर्न, द्रोपदी और अन्य परिजनों के मन में श्रीकृष्ण से पूछे जाने वाले सवालों का पहाड खड़ा होता चला जा रहा है। अन्ततः श्रीकृष्ण उपस्थित होते है और सभी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए सभी मिथ्या धारणाओं तथा संदेहों को निर्मूल कर देते हैं। श्रीकृष्ण कर्म का शाश्वत संदेश कहते है कि ‘कोई भी अपने कर्मों में रचे गए स्वयं के चक्रव्यूह से कभी भी मुक्त नहीं हो सकता है। हमारा सम्पूर्ण जीवन इस चक्रव्यूह के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। हमे अपने सतकर्मों से जीवन रूपी चक्रव्यूह में लड़ते हुए इस चक्रव्यूह को भेद कर विजयी होकर बाहर निकलना पडता है। इसके अतिरिक्त इसपर नियंत्रण का ओर कोई मार्ग है ही नहीं है। चकव्यूह में फंसकर अभिमन्यू की मृत्यु पर आधारित यह नाटक हमे कर्म, धर्म, निष्ठा एवं मातापिता के उत्तर दायित्वों जैसे विभिन्न सर्व कालिक, सार्वभौमिक शाश्वत संदेश देता है। छंद रूप में लिखित यह नाटक इतिहास और वर्तमान के बीच एक सेतु की भांति है। जहां एक ओर इसकी रोमांचक ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि, शानदार सेट्स, घटनाक्रम और ऐतिहासिक वेषभूषा इसे अति विषिष्ट बनाती है। वहीं दूसरी ओर बहुचर्चित टीवी सीरियल ’‘महाभारत’‘ में भगवान श्रीकृष्ण की भूमिका से प्रसिद्ध हुए ख्यातनाम अभिनेता नितीश भारद्वाज की उपस्थिति और अभिनय इस प्रस्तुति को भव्य, विराट, अदभुत एवं अविस्मरणीय बना दिया।
इस अवसर पर यूनिवसिर्टी के चेयरपर्सन प्रो. डॉ. एम एल स्वर्णकार, उपाध्यक्ष मीना स्वर्णकार, प्रो. चासंलर डॉ. विकास स्वर्णकार, आर आर सोनी, मुख्य सलाहकार प्रो. डॉ. हरि गौतम, प्रो-वाइस चांसलर, डॉ. सुधीर सचदेव, डीन डॉ. जी एन सक्सैना सहित बडी संख्या में राजनीतिक व प्रशासनिक हस्तियां, अनेक चिकित्सक और गणमान्य जन उपस्थित थे।