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सड़कों पर वाहन चालकों पर होने वाले चालान से आखिर क्यों परेशान हैं प्रदेश की अदालतें

locationजयपुरPublished: Mar 25, 2019 10:00:35 am

Submitted by:

Mridula Sharma

सड़कों पर चालान और अदालत पर बोझ

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सड़कों पर वाहन चालकों पर होने वाले चालान से आखिर क्यों परेशान हैं प्रदेश की अदालतें

शैलेन्द्र अग्रवाल/जयपुर. वाहन चालकों को सड़क पर निकलते ही चालान का डर सताता है, वहीं प्रदेश की अदालतें चालानों के अम्बार से परेशान हैं। प्रकरणों के इस अम्बार को कम करने के लिए 31 दिसम्बर 17 तक के मामले समाप्त कराने के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने पहल की है लेकिन आचार संहिता के कारण प्रस्ताव गृह विभाग में ही अटका हुआ है। प्रदेशभर में वाहन चालान मामलों की पांच अदालत हैं, जिनमें से चार जयपुर में हैं। इनमें से तीन न्यायालय अकेले जयपुर महानगर जिला न्यायालय के अधीन हैं। इन तीनों न्यायालयों में 40 से 45 हजार मामले लम्बित हैं और एक-एक न्यायालय में 12 से 15 हजार मामले हैं। अदालतों की परेशानी यह है कि इन प्रकरणों से जुड़े चालान में पुलिस आधे-अधूरे नाम पते भरती है, जिससे समन ही जारी नहीं हो पा रहे हैं।
उधर, इन अदालतों में फाइलों का अंबार लग गया है। न केवल विचाराधीन फाइलें इनमें कागजों के पहाड़ की तरह नजर आती हैं, बल्कि निस्तारित फाइलें भी बस्तों में बंधी पड़ी हैं। निस्तारित फाइलों को रखने की जिला न्यायालय परिसर में फिलहाल जगह नहीं होने से कर्मचारियों के बैठने के कमरे घिरे हुए हैं। फाइलों के ढेर से न्यायिक अधिकारियों के चेम्बर भी नहीं बच पाए हैं। जज की डायस के दोनों ओर से फाइलों के पहाड़ से खडे हो गए हैं।
चाहिए 64 कर्मचारी, उपलब्ध 6 ही
एक न्यायालय में औसतन एक लिपिक के पास 500 से 700 फाइल होनी चाहिए, लेकिन हकीकत यह है कि एक न्यायालय में 5 से 6 लिपिक हैं और वे ही 12 से 15 हजार फाइलों को संभाल रहे हैं।
6 माह बाद प्रसंज्ञान का अधिकार नहीं
विशेषज्ञों के अनुसार कानून कहता है कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत चालान होने के बाद कोर्ट 6 माह में ही प्रसंज्ञान ले सकती है, उसके बाद कोर्ट को प्रसंज्ञान लेने का अधिकार नहीं है।
फैसले से पहले ही उड़ जाती है स्याही
पुलिस और परिवहन विभाग ने मोटर वाहन अधिनियम के तहत चालान के सिस्टम को ऑनलाइन करने के लिए मशीनों के जरिए चालान काटे जा रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति यह है कि मशीन से निकलने वाले चालान के प्रिंट से कुछ ही दिन बाद स्याही उड़ जाती है या फीकी नजर आने लगती है। इससे पता चलना ही मुश्किल है कि चालान शराब पीकर वाहन चलाने का है या लाल बत्ती क्रॉस करने का है या पीछे वाली सवारी के हेलमेट नहीं लगाने का है।
2 साल बाद वापस लिए जाते हैं मामले
अब तक दो साल बाद इस तरह के प्रकरणों को वापस लिया जाता रहा है। बताया जाता है कि लम्बित प्रकरणों के बोझ से दबी अदालतों की स्थिति को देखते हुए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने मुकदमों की संख्या में कमी लाने की पहल की है। इसके लिए 31 दिसम्बर 17 से पहले के लम्बित प्रकरणों को वापस लेने के लिए पुलिस को प्रस्ताव भेजा गया है।
परिवहन अधिकारी बनाते हैं दबाव
मार्च होने के कारण परिवहन अधिकारियों को बकाया राशि की अधिक से अधिक वसूली करने के लिए टार्गेट मिले हुए हैं। पुलिस को भी अधिक से अधिक चालान करने के लिए टार्गेट मिले हुए हैं। इस कारण परिवहन अधिकारी तो पहले पुराना बकाया जमा कराने के लिए दवाब बनाते हैं, जबकि कानून कहता है कि पुराने चालान के मामले में कोर्ट भी 6 माह बाद प्रसंज्ञान नहीं ले सकता।
पुलिस राजकार्य में व्यस्त
कोर्ट की एक परेशानी यह भी है कि चालान के मामले में समन की तामील पुलिस को करानी होती है, लेकिन पुलिस कभी वीआइपी मूवमेंट, तो कभी आइपीएल मैच के आयोजन या अन्य किसी कार्य में व्यस्त होने का तर्क देती है। इन कार्यों का हवाला देकर कोर्ट से समय ले लेती है। कोर्ट भी पुलिसकर्मी की व्यस्तता देखकर केस में अगली तारीख दे देती है।
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