पत्रिका की टीम ने इन क्षेत्रों में पहुंचकर पीड़ितों का हाल जाना। हनुमानगढ़ी निवासी किशना सुमन ने बताया कि चम्बल किनारे करीब सात साल पहले 2 लाख रुपए का कर्जा लेकर मकान खरीदा था। अचानक कोटा बैराज के गेट खुले तो पानी का अचानक सैलाब आया और मकान में रखा सब सामान बहा ले गया। मकान का कुछ पता नहीं है। बदन पर सिर्फ कपड़े ही बचे हैं। चार बेटियों से भरापूरा परिवार आज बेघर हो गया है।
कारीगरी का काम करने वाले हरिशंकर से जब पत्रिका ने बात की तो उनके आंखों में आसूं आ गए। हरिशंकर ने बताया कि वे मजदूरी करके परिवार का पेट पाल रहे हैं। कर्जा लेकर दो कमरे बनाए थे। यह सोचा भी नहीं था कि कर्ज का पैसा इस तरह से डूब जाएगा। बेटी बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती थी। यहां आकर देखा तो सब कुछ बह गया। यह तो सिर्फ हरिशंकर और किशना सुमन की कहानी है। चम्बल में आया उफान कई लोगों के घर उजाड़ गया और कई लोगों के अरमानों पर पानी फेर गया है। हरिशंकर और किशना सुमन जैसे सैकड़ों परिवार चम्बल में आई बाढ़ के साथ ही चिंताओं में डूबे हैं। कोटा बैराज के तीन दिन से खोल रखे गेटों के कारण आई बाढ़ से कई लोगों के अरमान पानी में डूब गए हैं।
बूंदी में दयाराम मेघवाल ने बताया कि अचानक चम्बल के उफान से मकान डूब गया। छह हजार रुपए देकर बड़ी क्रेन की सहायता से इन सामानों को निकाला और किसी परिचित के यहां रखवाया। घर अभी भी डूबा हुआ है। इसके चलते वे वहां जा नहीं पा रहे हैं। बूंदी में सिलिका निवासी विनोद मेघवाल को तो दीवार फांदकर अपनी जान बचानी पड़ी। पानी का तेज बहाव में जेवर, खाने-पीने का घरेलू सामान डूब गया। अभी उन्होंने नया मकान बनाया था। मकान पर प्लास्टर तक नहीं करवा पाया। बिजली की फिटिंग तक नहीं हो पाई। जैसे-तैसे परिवार का पेट पाल रहा था। जिंदगी कब पटरी पर लौटेंगी यही चिंता उन्हें सता रही है।