कहा जाता है कि पंडित शुक्ल क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के अभिन्न मित्र थे। विद्यार्थी के अनुरोध पर ही उन्होंने जयपुर में क्रांतिकारियों का गुप्त ठिकाना बनाया था। शुक्ल की जौहरी बाजार और बाबा हरीशचंद्र मार्ग में पुश्तैनी हवेली थी और वहां चन्द्रशेखर आजाद को उन्होंने अपना रिश्तेदार बताकर करीब दो माह ठहराया था।ये सब स्मरण शुक्ल के बेटे स्व.अवधेशनारायण शुक्ल की किताब सत्यमेव जयते में भी दर्ज है।
चांदपोल बाजार के बाबा हरीशचंद्र मार्गशिवनारायण मिश्र की गली में राजवैद्य पंडित मुक्तिनारायण शुक्ल की हवेली थी जिसे क्रांतिकारियों के ठहरने और शस्त्रागार के तौर पर काम लिया जाता था। राजवैद्य शुक्ल के प्रभाव के कारण क्रांतिकारियों पर कोई शक नहीं करता था क्योंकि जयपुर रियासत को अंग्रेज अपना मित्र मानता था। इसी का लाभ उठाकर शुक्ल ने कई बार क्रांतिकारियों को यहां ठहराया।
साइकिल से निकले थे आजाद
कहा जाता है कि अंग्रेजों को आजाद के जयपुर में छिपे होने की जानकारी मिल गई थी, ये बात जैसे रादवैद्य मुक्ति नारायण शुक्ल को पता चली तो उन्होंने आजाद को अपने 14 साल के बेटे अवधेश नारयण शुक्ल के साथ साइकिल से रवाना कर दिया, जब तक अंग्रेज यहां पहुंचते, आजाद शहर की तंग गलियों से साइकिल चलाते हुए शहर से बाहर निकल गए थे। आजाद साइकिल से अवधेश के साथ कानोता रेलवे स्टेशन पहुंच गए और यहां से आगरा की ट्रेन पकड़ रवाना हो गए।
वहीं अवधेश नारयण शुक्ल साइकिल लेकर पुनः बाबा हरीश चंद्र मार्ग स्थित अपनी हवेली लौट आए। यह साइकिल कई सालों तक शुक्ल परिवार ने अपने पास रखी। वे इसकी पूजा करते थे। बाद में ये परिवार यहां से पांच बत्ती के पास शिफ्ट हो गया। और हवेली आज विरान पड़ी है।