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चन्द्रयान-2 : हर एक्सपेरीमेंट नया एक्सपीरियेंस देता है

locationजयपुरPublished: Sep 10, 2019 05:17:59 pm

Submitted by:

Neeru Yadav

साइंस में सफलता और असफलता नहीं होती केवल एक्सपेरीमेंट होते हैं। और हर एक्सपेरीमेंट एक नया एक्सपीरियेंस देता है। चन्द्रयान-2 मून मिशन ने कुछ नया और बेहतर करने का एक्सपीरियेंस दिया है इसरो को।

चन्द्रयान-2 : हर एक्सपेरीमेंट नया एक्सपीरियेंस देता है

चन्द्रयान-2 : हर एक्सपेरीमेंट नया एक्सपीरियेंस देता है

साइंस में सफलता और असफलता नहीं होती केवल एक्सपेरीमेंट होते हैं। और हर एक्सपेरीमेंट एक नया एक्सपीरियेंस देता है। चन्द्रयान-2 मून मिशन ने कुछ नया और बेहतर करने का एक्सपीरियेंस दिया है इसरो को। इस मून मिशन में कई ऐसी चीजें थी जो पहली बार हुई और कई टेक्नोलॉजी खुद इसरो ने पहली बार एक्सपीरियेंस की। स्पेस में ऑर्बिट बदलने के दौरान तय गति और तय दूरी में ज्यादा आगे बढ़े यानि बेहतर आर्बिट मैन्यूवरिंग की गई। जिससे चन्द्रयान-2 के ईंधन को बचाने में मदद मिली। आइये आपको बताते हैं कि इसरो ने इन मून मिशन में क्या-क्या पहली बार किया और क्या पहली बार एक्सपीरियेंस किया
रशिया ने पहले चंद्रयान-2 के लिए लैंडर देने की बात कही थी, लेकिन उसने कुछ समय बाद मना कर दिया था. इसके बाद इसरो वैज्ञानिकों ने फैसला किया कि वे खुद अपना लैंडर बनाएंगे. अपना रोवर बनाएंगे. इसरो वैज्ञानिकों ने दोनों को बनाया भी. लैंडर और रोवर को बनाने के लिए खुद ही रिसर्च किया. डिजाइन तैयार किया. फिर उसे बनाया.
इसरो ने चंद्रयान-2 से पहले तक किसी उपग्रह पर लैंडर या रोवर नहीं भेजा था. ये पहली बार है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने किसी प्राकृतिक उपग्रह पर अपना लैंडर और रोवर भेजा. भले ही विक्रम लैंडर तय मार्ग और तय जगह पर सही से न उतरा हो, लेकिन वह चांद पर है
भारत दुनिया का पहला देश है और इसरो दुनिया की पहली स्पेस एजेंसी है, जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना यान पहुंचाया है. इससे पहले ऐसा किसी भी देश ने नहीं किया
इसरो वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी सेलेस्टियल बॉडी यानी अंतरिक्षीय वस्तु पर अपना यान लैंड कराने कि तकनीक विकसित की. क्योंकि, पृथ्वी को छोड़कर ज्यादातर सेलेस्टियल बॉडी पर हवा, गुरुत्वाकर्षण या वातावरण नहीं है
इसरो वैज्ञानिकों ने पहली बार इतने वजन का सैटेलाइट लॉन्च किया. आमतौर पर किसी सैटेलाइट में एक ही हिस्सा होता है. लेकिन, चंद्रयान-2 में तीन हिस्से थे. ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर. तीनों को एकसाथ इस तरह से जोड़ना था कि चंद्रयान-2 कंपोजिट मॉड्यूल बनकर जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के पेलोड फेयरिंग में आसानी से फिट हो जाए
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