14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरे चन्द्रयान – 1 के बाद देश का यह दूसरा चन्द्र अभियान है। इस अभियान में देश में निर्मित चन्द्र कक्ष यान, एक रोवर और एक लैंडर शामिल हैं। इन सभी को इसरो ने बनाया है। देश ने चन्द्रयान -2 को 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा रेंज से भारतीय समयानुसार दोपहर 2.43 बजे 43.43 मीटर लंबे जीएसएलवी एमके3 एम1 रॉकेट की मदद से सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया। चन्द्रयान – 2 लैंडर और रोवर चन्द्रमा पर करीब 70 डिग्री दक्षिण के अक्षांश पर स्थित दो क्रेटरों मजिनस सी और सिमपेलियस एन के बीच एक बड़े और ऊंचे मैदान पर उतरने का प्रयास करेगा।
ये हैं चन्द्रयान – 2 की खासियतें – चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र पर एक सॉफ्ट लैंडिंग का संचालन करने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन हैं। – चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। इससे पहले किसी भी देश ने चांद के दक्षिणी ध्रुव में लैंडिंग नहीं है। इसी के साथ भारत यहां उतरने वाला विश्व का पहला देश बन जाएगा।
– दक्षिणी ध्रुव पर काफी अंधेरा होता है। वहां सूर्य की किरणे भी नहीं पहुंच पाती है। इसलिए किसी भी देश ने आज तक वहां लैंडिंग करने की हिम्मत नहीं की। – चंद्रयान-2 को बनाने में 978 करोड़ की लागत लगी है
– चंद्रयान-2 का वजन 3800 किलो है। इसका पूरा खर्च 603 करोड़ रुपए है। चंद्रयान में 13 पेलोड हैं। इसमें भारत के 5,यूरोप के 3, अमेरिका के 2 और बुल्गारिया का 1 पेलोड शामिल है। चंद्रयान-2 में 3 मॉडयूल भी है।
ये हैं चन्द्रयान – 2 ऑर्बिटर
वजन- 2379 किलो
मिशन की अवधि – 1 साल
आर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसका काम चांद की सतह का निरीक्षण करना और खनिजों का पता लगाना है। इसके साथ 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं, जिनके अलग-अलग काम होंगे। इसके जरिए चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी। बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाया जाएगा। बाहरी वातावरण को स्कैन किया जाएगा।
वजन- 2379 किलो
मिशन की अवधि – 1 साल
आर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसका काम चांद की सतह का निरीक्षण करना और खनिजों का पता लगाना है। इसके साथ 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं, जिनके अलग-अलग काम होंगे। इसके जरिए चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी। बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाया जाएगा। बाहरी वातावरण को स्कैन किया जाएगा।
लैंडर (विक्रम)
वजन- 1471 किलो
मिशन की अवधि – 15 दिन
इसरो का यह पहला मिशन है, जिसमें लैंडर जाएगा। लैंडर आर्बिटर (विक्रम) से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। यह 2 मिनट प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर के अलग हो जाने के बाद, यह एक ऐसे क्षेत्र की ओर बढ़ेगा जिसके बारे में अब तक बहुत कम खोजबीन हुई है। लैंडर चंद्रमा की झीलों को मापेगा और अन्य चीजों के अलावा लूनर क्रस्ट में खुदाई करेगा।
वजन- 1471 किलो
मिशन की अवधि – 15 दिन
इसरो का यह पहला मिशन है, जिसमें लैंडर जाएगा। लैंडर आर्बिटर (विक्रम) से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। यह 2 मिनट प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर के अलग हो जाने के बाद, यह एक ऐसे क्षेत्र की ओर बढ़ेगा जिसके बारे में अब तक बहुत कम खोजबीन हुई है। लैंडर चंद्रमा की झीलों को मापेगा और अन्य चीजों के अलावा लूनर क्रस्ट में खुदाई करेगा।
रोवर (प्रज्ञान)
वजन- 27 किलो
मिशन की अवधि – 15 दिन (चंद्रमा का एक दिन)
प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा। चांद की मिट्टी का रासायनिक विश्लेषण करेगा। रोवर के लिए पावर की कोई दिक्कत न हो, इसके लिए इसे सोलर पावर उपकरणों से भी लैस किया गया है।
वजन- 27 किलो
मिशन की अवधि – 15 दिन (चंद्रमा का एक दिन)
प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा। चांद की मिट्टी का रासायनिक विश्लेषण करेगा। रोवर के लिए पावर की कोई दिक्कत न हो, इसके लिए इसे सोलर पावर उपकरणों से भी लैस किया गया है।