ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर बताते हैं कि चातुर्मास के प्रारंभिक दिनों अर्थात आषाढ़ माह के अंतिम दिनों में गुरु पूजा का महत्व है. आषाढ़ माह का अंतिम दिन यानि पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के नाम से ही जानी जाती है. यह दिन गुरू भक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है. इसके बाद सावन का महीना आता है जिसमें भगवान शिव की आराधना की जाती है. भाद्रपद यानि भादों माह में भगवान कृष्ण की पूजा का महत्व है और आश्विन माह में देवी की उपासना की जाती है.
चातुर्मास के दौरान अलग—अलग इच्छापूर्तियों के लिए भी अलग—अलग देवी—देवताओं की पूजा की जाती है. ज्योतिषाचार्य पंडित सोमश परसाई बताते हैं कि गुरु की पूजा करने से जीवन के हर संकट दूर होते हैं. जिन जातकों को विवाह में बाधा आ रही हो उन्हें सावन के महीने में पूरी श्रदृधा से भगवान शिव की पूजा करना चाहिए. संतान सुख की इच्छा रखनेवालों को भाद्रपद में भगवान कृष्ण की उपासना करना चाहिए, उनका मनोरथ जरूर पूर्ण होगा. जिन लोगों को जिंदगी में जीत की इच्छा है, जिन्हें शक्ति या आकर्षण चाहिए, उन्हें आश्विन माह में देवी दुर्गा और श्रीराम की आराधना करनी चाहिए. इससे उनकी मनोकामना पूरी हो जाएगी.