पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चे को ना तो पूरी तरह खुली छूट दें और ना ही छोटी-छोटी बात पर अंकुश लगाने की कोशिश करें। उसे आजादी मिले ताकि उसका स्वाभाविक विकास हो सके, साथ ही उसकी एक हद भी हो ताकि जिद्दी स्वभाव भी न बने।
बच्चे माता-पिता का व्यवहार और आदतें देखकर ही बहुत कुछ सीखते हैं। पेरेंट्स को चाहिए कि वे खुद शिष्टाचार को अपनाएं। अच्छी आदतें और व्यवहार उनका हो ताकि बच्चा भी उसी सीमा में रहना सीखे।
पेरेंट्स हर एक मामले में बच्चे को डांटने-डपटने या फिर टोकते रहने के बजाय बच्चों से घुले-मिलें। उनके साथ खेलें। हंसी-मजाक करें। उनकी पसंद और नापंसद को जानें। उनसे मन से जुड़ें। ये आदतें बच्चे को जिद्दी बनाने से बचाती हैं।
पेरेंट्स इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों की हर बात माने जाने पर बच्चे इसके आदी हो जाते हैं और माता-पिता के किसी चीज के लिए मना किए जाने पर वह जिद करने लगते हैं। इसलिए पेरेंट्स को चाहिए कि बच्चे को ना कहना भी सीखें। बच्चे को यह मैसेज दें कि हमेशा उसकी मनमर्जी नहीं चल सकती। बच्चे पर अपनी पसंद-नापसंद थोपने से भी बचें। आप उसे अपनी बात मानने के लिए मजबूर करेंगे तो उसका बर्ताव उग्र हो सकता है।
पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा उनकी बात सुनें और उनकी बात माने, तो पहले पेरेंट्स को बच्चे की बात सुननी होगी। बच्चे को समझना होगा। ध्यान रखें कि मजबूत इच्छाशक्ति वाले बच्चों की राय बहुत मजबूत होती है और कई बार वे अपने पेरेंट्स से बहस भी करने लगते है। अगर पेरेंट्स उनकी बातें नहीं सुनेंगे तो वे और जिद्दी बन जाएंगे। अगर बच्चे को यह लगने लगता है कि उसकी बातों को महत्व नहीं दिया जा रहा है, तो वह धीरे धीरे आप की हर बात को दरकिनार करना शुरू कर देता है।