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बच्चों का बचपन छिन रहा कार्टून का जुनून

locationजयपुरPublished: Jun 12, 2018 12:40:41 pm

Submitted by:

Ashiya Shaikh

बच्चों का पसंदीदा टाइम पास है कार्टून चैनल्स

childern behaving like cartoon

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जयपुर. इन दिनों बच्चों का पसंदीदा टाइम पास है कार्टून चैनल्स। बच्चों पर कार्टून कैरेक्टर्स और प्रोग्राम्स का नशा इस कदर हावी होता जा रहा है कि अब यह उनकी सेहत और व्यवहार पर भी खराब असर डाल पड़ा रहा। आजकल न्यूक्लियर फैमिली, सिंगल चाइल्ड कॉन्सेप्ट का बढ़ता चलन, सिकुड़ते स्पोट्र्स ग्राउंड, वर्किंग पेरेन्ट्स का बच्चों को समय न दे पाना ऐसे तमाम कारण की वजह से बच्चे सारा दिन टीवी से चिपके रहने को मजबूर हैं। जिसका नतीजा-बच्चों के व्यवाहर में कई तरह के बदलाव दिखने को मिल रहे है। जो उनके बचपन और पर्सनलिटी पर काफी असर डाल रहे हैं। मनोचिकित्सालय के चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों को कार्टून्स की वर्चुअल दुनिया ही वास्तविक लगने लगती है। वे उसी को असली समझकर जीने लगते हैं। यहां ताकि बच्चे अपनी हर समस्या का समाधान अपने फेवरेट कार्टून कैरेक्टर में ढंूढते है। साथ ही उसकी की तरह नकल भी करने लगते हैं।
केस १
अनामिका (परिवर्तित नाम ) की आयु ५ साल की है, लेकिन उसमें अपनी उम्र से गुस्सा इतना ज्यादा है, कि गुस्से में वो खुद को चोट पहुचानें लगती है। वह ऐसे इसलिए करती है, क्योंकि उसका फेवरेट कार्टून कैरेक्टर ऐसा करता है।
केस-२
अंकित (परिवर्तित नाम)७ वर्ष का है उसका व्यवहार काफी उग्र हो चुका है। वह आय दिन दूसरों बच्चों से लड़ाई करता रहता है और कहता है कि मैं निन्जा हथौड़ी की तरह लड़ता हूं।
हो रही हैल्थ रिलेटेड प्रॉब्लम्स
-बच्चों में ओबेसिटी
– नजर कमजोर होना
– साइकोलोजिकल प्रॉब्लम होना
-व्यवाहर में परिवर्तन चिड़चिड़ापन, और गुस्सा आना।
-असामाजिक होना

पेरेन्ट्स भी हैं जिम्मेदार
घर से बाहर खेलने नहीं जाने देना या किसी काम को पूरा करने के लिए बच्चों को कार्टून चैनल लगाकर बैठा देना हैं। बार-बार ऐसा करने से बच्चों को भी आदत लग जाती है। खाने-पीने में अनाकानी करने वाले बच्चों को छोटा भीम की तरह स्ट्रॉन्ग बनने का प्रलोभन दिया जाता है। जाने-अनजाने पैरेंट्स खुद बच्चों में कार्टून कैरेक्टर्स के लिए रुचि पैदा करते है।
क्या कहते हैं एक्सपट्र्स
एक्सपट्र्स इन प्रॉब्लम्स को तीन कैटेगरी में रख रहे हैं- पहला टीवी का एडिक्शन, दूसरा व्यवहार संबंधी जैसे पढ़ाई में मन न लगना, तीसरा उग्रता जैसे छोटे भीम या निन्जा हथौड़ी की तरह लडऩा। वर्किंग और होममेकर्स दोनों ही ग्रुप के पेरेन्ट्स ऐसी समस्या लेकर उनके पास आ रहे हैं, इनमें वर्किंग पेरेन्ट्स की संख्या ज्यादा है,क्योंकि उनके घरों में बच्चों के लिए टीवी देखना ज्यादा आसान होता है।
ऐसे करें बच्चों पर कंट्रोल
-टीवी देखने के लिए बच्चों का समय तय करें। एक घंटे में से आधा घंटा कार्टून और आधा घंटा कोई और दूसरा प्रोग्राम देख सकते हैं।
-अचानक समय कम करने की बजाय धीरे-धीरे टाइम लिमिट घटाऐं।
-बच्चों के साथ गेम्स खेलें। म्यूजियम, जू और आउटिंग पर लें जाएं।
-कोशिश करें कि बच्चों का खेल के मैदान से रिश्ता कायम रहे। वह दौड़े-भागे, शारीरिक मेहनत करें। इससे उसकी शारीरिक व मानसिक क्षमता भी बढ़ती है।
वर्जन
छोटे बच्चों का दिमाग परिपक नहीं होता है, वो जो देखते उसे अपना लेते है। इसलिए बच्चों को ज्यादा टीवी देखने से रोकना चाहिए और पैरेंस को भी बच्चों को ध्यान देना चाहिए।
डॉक्टर अनिता गौतम, मनोचिकित्सक
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