चीन कभी था हमसे फिसड्डी
वर्ष 1954 के दूसरे एशियाड में जहां भारत ने 5 स्वर्ण पदक जीते थे वहीं चीन मात्र 2 स्वर्ण पदक जीत पाया था। वर्ष 1966 के एशियाड में भारत को 7 स्वर्ण और चीन को 5 स्वर्ण मिले थे। लेकिन चीन ने फिर ब्रेक लिए और वर्ष 1974 के एशियाड में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए 33 स्वर्ण पदक अपने नाम किए और भारत केवल 4 स्वर्ण पदक ही जीत सका। वर्ष 1978 के एशियाड में चीन ने 51 और भारत ने 11 स्वर्ण पदक जीते। वर्ष 1982 के नई दिल्ली एशियाड में चीन ने 61 स्वर्ण पदकों को जीता और भारत केवल 13 स्वर्णपदक ही जीत सका। यानी यहां भी चीन हमें घर में ही मात दे गया।
एशिया के बीमार व्यक्ति से खिलाड़ी तक
चीन को पिछली शताब्दी की शुरुआत में एशिया का बीमार व्यक्ति कहा जाता था, सिक मैन ऑफ एशिया। शुरूआती एशियाई खेलों की पदक तालिका में जापान, कोरिया और यहां तक कि फिलीपींस का दबदबा रहता था, लेकिन 70 के दशक में चीन ने सभी को पछाड़ कर एशिया में सिरमौर बन गया।
हम जल्द सीखें तो अच्छा
भारत में अब जल्द ही स्कूलों में खेल का पीरियड रोज अनिवार्य होने जा रहा है। मानव संसाधन मंत्रालय इस दिशा में प्रयास कर रहा है। लेकिन हालात ये हैं कि कु छ ही स्कूलों में खेल के मैदान हैं। शहरी भारत का ये आलम है कि कॉलोनियों में खेल के मैदान ही नहीं हैं। नया भारत सड़कों पर ही विकेट लगाकर खेल रहा है। खेल एसोसिएशनों की राजनीति तो खिलाडिय़ों को पस्त कर देती है। कहां है स्पोट्र्स में मेक इन इंडिया?
वर्ष 1954 के दूसरे एशियाड में जहां भारत ने 5 स्वर्ण पदक जीते थे वहीं चीन मात्र 2 स्वर्ण पदक जीत पाया था। वर्ष 1966 के एशियाड में भारत को 7 स्वर्ण और चीन को 5 स्वर्ण मिले थे। लेकिन चीन ने फिर ब्रेक लिए और वर्ष 1974 के एशियाड में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए 33 स्वर्ण पदक अपने नाम किए और भारत केवल 4 स्वर्ण पदक ही जीत सका। वर्ष 1978 के एशियाड में चीन ने 51 और भारत ने 11 स्वर्ण पदक जीते। वर्ष 1982 के नई दिल्ली एशियाड में चीन ने 61 स्वर्ण पदकों को जीता और भारत केवल 13 स्वर्णपदक ही जीत सका। यानी यहां भी चीन हमें घर में ही मात दे गया।
एशिया के बीमार व्यक्ति से खिलाड़ी तक
चीन को पिछली शताब्दी की शुरुआत में एशिया का बीमार व्यक्ति कहा जाता था, सिक मैन ऑफ एशिया। शुरूआती एशियाई खेलों की पदक तालिका में जापान, कोरिया और यहां तक कि फिलीपींस का दबदबा रहता था, लेकिन 70 के दशक में चीन ने सभी को पछाड़ कर एशिया में सिरमौर बन गया।
हम जल्द सीखें तो अच्छा
भारत में अब जल्द ही स्कूलों में खेल का पीरियड रोज अनिवार्य होने जा रहा है। मानव संसाधन मंत्रालय इस दिशा में प्रयास कर रहा है। लेकिन हालात ये हैं कि कु छ ही स्कूलों में खेल के मैदान हैं। शहरी भारत का ये आलम है कि कॉलोनियों में खेल के मैदान ही नहीं हैं। नया भारत सड़कों पर ही विकेट लगाकर खेल रहा है। खेल एसोसिएशनों की राजनीति तो खिलाडिय़ों को पस्त कर देती है। कहां है स्पोट्र्स में मेक इन इंडिया?