मणिपाल अस्पताल के कंसलटंट डॉ. दीपक यदुवंशी ने बताया कि सीओपीडी के कारण होने वाली मृत्युओं की संख्या एड्स, टीबी, मलेरिया और मधुमेह से होने वाली मृत्युओं की कुल संख्या से भी अधिक है। बढ़ते आंकड़ों के बावजूद हमारे देश में सीओपीडी पर ध्यान नहीं दिया जाता है। एक अन्य चिंताजनक तथ्य यह है कि सीओपीडी की जांच में विलंब और अपर्याप्त उपचार के कारण स्थिति खराब होती जा रही है और रोगी को लंग अटैक हो रहा है। समय बीतने के साथ फेफड़ों के परिपक्व होने से इस रोग के लक्षण अधिक आक्रामक हो जाते हैं, यदि हम 20-25 साल के हैं और बढ़ती आयु के साथ हमारे फेफड़ों की कार्यात्मकता घटती जाएगी। आयु बढऩे पर सांस लेना थोड़ा अधिक कठिन हो सकता है।
डॉ. दीपक ने बताया कि लगातार बढ़ता प्रदूषण और सिगरेट का बढ़ता चलन सीओपीडी के मरीजों की संख्या को बढ़ा रहा है। भारत में हर साल करीब 9 लाख लोगों की मौत सीओपीडी से हो जाती है। यदि राजस्थान की बात करें तो प्रति एक लाख लोगों में से 111 लोगों की सीओपीडी से मौत हो रही है। उन्होंने साफ कहा कि सीओपीडी एक अलग बीमारी है और अस्थमा एक अलग बीमारी है। रोग के बारे में जागरुकता का अभाव होने के कारण अधिकतर लोग समय पर डॉक्टर के पास नहीं पहुंच पाते हैं।
उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से कम होना, डॉक्टर की ओर से शारीरिक जांच के परिणाम, सांस लेने में कष्ट होना और तेजी से उथली सांस लेना सीओपीडी के बिगड़ते लक्षण हैं। इस कारण लंग अटैक आने का खतरा बढ़ जाता है। लंग अटैक के संकेतों और लक्षणों को पहचानना और डॉक्टर से सही समय पर मदद लेना इस रोग को बढऩे से रोकने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है। लंग अटैक में तुरंत चिकित्सकीय सहायता चाहिए होती है और यदि उपचार न हो तो मृत्यु भी हो सकती है।
उन्होंने बताया कि लंग अटैक हर मामले में पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन कुछ सावधानियां रखने से लंग अटैक की संख्या और आवृत्ति कम करने में मदद मिल सकती है। श्वसन मार्गों को खोलने और इनहेलर्स के उपयोग से लंग अटैक के खतरे को कम किया जा सकता है। यदि लक्षण बढ़ जाएं तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है।