देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में गुलदाउदी काफी पसंद किया जाता है। इसलिए इसकी अच्छी खेती की जाती है। ग्रीन हाउस में उगाने पर यह ज्यादा उपज देती है। यह कंपोज़िट परिवार से संबंधित है। इसकी बढ़ती मांग के चलते गुलदाउदी की व्यवसायिक खेती में भी बढ़ोतरी हो रही है। पार्टियों, धार्मिक एवं सामाजिक समारोहों में सजावट के लिए इस फूल का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में खासतौर पर कर्नाटक, राजस्थान, बिहार, तामिलनाडू, पंजाब और महाराष्ट्र में गुलदाउदी की खेती बहुतायत में की जाती है।
दरअसल, गुलदाउदी एक बारहमासी सजावटी फूलों का पौधा है। इसकी लगभग 30 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। मुख्यतः यह एशिया और पूर्वोत्तर यूरोप मे पाया जाता है। गुलदाउदी का पौधा शाक की श्रेणी में आता है। इसकी जड़ें मुख्यतया प्रधान मूल, शाखादार और रेशेदार होती हैं। तना कोमल, सीधा तथा कभी कभी रोएँदार होता है। गुलदाउदी को जाड़े की रानी भी कहते हैं। इसे अमेरिका में सामान्यत: ‘ग्लोरी ऑफ़ ईस्ट’ या ‘मम’ भी संक्षिप्त रूप से कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति संभवत: चीन में मानी जाती है। यह बहुत विस्तृत रूप से बगीचे में उगाया जाता है तथा भारत में व्यावसायिक रूप से खेती किए जाने वाले पाँच फूलों में से एक है।
दो समूह में होती हैं किस्में
फूल के आकार के आधार पर गुलदाउदी की प्रजातियों को दो समूहों में बाँटा गया है। इनमें एक है बड़े फूल वाली गुलदाउदी जबकि दूसरा है छोटे फूल वाली गुलदाउदी। बड़े फूल वाली किस्मों में कस्तूरबा गाँधी (सफेद), चन्द्रमा (पीला),महात्मा गाँधी (बैंगनी), मीरा, ताम्र एवं अरुण (लाल) का होता है। जबकि छोटे फूल वाली किस्मों की बात करें तो इनमें शरद मुक्ता, शरद तनाका, शरद माला (सफेद), शरद बहार, शरद प्रभा (बैगनी), राखी, अरुण श्रृंगार, सुहाग श्रृंगार (लाल) समेत अन्य मुख्य हैं।
बेमौसम भी खेती संभव
गुलदाउदी की खेती की एक खास महत्वपूर्ण बात यह है, कि इसे कृत्रिम वातावरण में पॉलीहाउस के अन्दर बेमौसम उगाया जा सकता है। इसे ‘ग्लोरी आफ ईस्ट’ के नाम से भी जाना जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुलदाउदी की खेती भारत, जापान, चीन, इंग्लैंड, अमेरिका, इजरायल, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और अन्य देशों में व्यावसायिक तौर पर की जाती है। आपको बता दें कि गुलदाउदी एक शरद ऋतु का पौधा है। ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में इसके पौधे का अच्छा विकास नहीं होता है।