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गूंजे पखावज, विचित्र वीणा और ध्रुवपद गायन के स्वर

locationजयपुरPublished: Dec 07, 2018 08:08:05 pm

Submitted by:

imran sheikh

दो दिवसीय 24वें अखिल भारतीय ध्रुवपद नाद- निनाद विरासत समारोह सम्पन्न
आखिरी दिन पं. डालचंद शर्मा, डॉ. राधिका उमड़ेकर और पं. प्रेम कुमार मलिक ने दी प्रस्तुतियां

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गूंजे पखावज, विचित्र वीणा और ध्रुवपद गायन के स्वर

भगवान गणेश के वाद्ययंत्र पखावज की थाप, मां सरस्वती की विचित्र वीणा के स्वर और सामवेद की गायकी ध्रुवपद की प्रस्तुतियों से यहां दो दिवसीय २४वें अखिल भारतीय ध्रुवपद नाद-निनाद विरासत समारोह का समापन हुआ। जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में इंटरनेशनल ध्रुवपद धाम ट्रस्ट एवं संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में आखिरी दिन पखावज वादक पं. डालचंद शर्मा, विचित्र वीणा वादिका डॉ. राधिका उमड़ेकर और ध्रुवपद गायक पं. प्रेम कुमार मलिक ने अपनी प्रस्तुतियों से श्रोताओं को रिझाया। समारोह की शुरुआत में पं. डालचंद शर्मा का एकल पखावज वादन हुआ। उन्होंने ताल चौताल में शिव परन, धा किट के प्रकार, अतीत-अनाघात, धिन नक बाज, रेला आदि की खूबसूरत प्रस्तुति दी। उनके साथ सारंगी पर घनश्याम सिसोदिया एवं पखावज पर उनके शिष्यों मनमोहन नायक एवं गोपाल उगीले ने संगत की।
मलिक ने सुरों में पिरोई राग जयजयवंती

कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति के रूप में विचित्र वीणा वादिका डॉ. राधिका उमड़ेकर ने राग चारूकेशी में जोड़, झाला और आलाप में ध्रुवपद के आलापचारी के बाद 12 मात्रा, द्रुत चौताल एवं 9 मात्रा में बंदिशों को प्रस्तुत किया। पखावज पर मुम्बई के मृणाल उपाध्याय ने संगत की। अंतिम प्रस्तुति में दरभंगा घराने के पं. प्रेम कुमार मलिक ने राग जयजयवंती सहित अन्य रागों में खंडार वाणी के आलापों की प्रस्तुति के बाद चौताल एवं सूलताल में बंदिशों को पेश करते हुए लयकारियां, तिहाईयां एवं अनाघात आदि का प्रयोग किया। उनके साथ पखावज पर पं. अखिलेश गुंदेचा ने साथ दिया। समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष अशोक पांड्या थे। संचालन प्रणय भारद्वाज ने किया। अंत में कार्यक्रम संयोजिका डॉ. मधु भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया।
‘ध्रुवपद परम्परा एवं प्रयोगÓ पर हुई चर्चा

इससे पूर्व राजस्थान चैम्बर भवन में आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने ‘ध्रुवपद परम्परा एवं प्रयोगÓ पर अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर विख्यात रूद्रवीणा वादक उस्ताद बहाउद्दीन खान डागर ने अपने पिता उस्ताद के द्वारा वीणा में किए गए प्रयोगों को दर्शकों के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि प्रयोगों में नियंत्रण एवं संतुलन आवश्यक है एवं परम्परा प्रयोग अलग नहीं बल्कि समानार्थी है। विद्वान वक्ता प्रो.राजेश्वर आचार्य ने ध्रुवपद की अनेक शाब्दिक एवं आर्थिक व्याख्याओं एवं उनके समसामयिक परिप्रेक्ष्य में प्रायोगिक स्वरूप को दर्शाया। संगोष्ठी में डॉ.मधु भट्ट तैलंग एवं डॉ. सत्यवती शर्मा द्वारा संपादित पुस्तक ‘संगीत एवं नवाचारÓ का विमोचन भी किया गया।

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