मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जयपुर प्रथम डॉ. नरोत्तम शर्मा की ओर से जारी नोटिस में पूछा है कि निम्स में भर्ती कोरोना पॉजिटिव मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल की जानकारी विभाग को समाचार पत्रों से ही मिली है। जबकि राज्य सरकार की गाइडलाइन के अनुसार कोविड मरीजों के उपचार के लिए निम्स को डेडिकेटेड कोविड केयर इंस्टीटयूट के लिए नामित किया हुआ है। जिसमें इस अस्पताल को प्रोटोकोल के अनुसार दी गई दवा के आधार पर ही कोविड मरीजों का इलाज करना है। लेकिन अस्पताल की ओर से राज्य सरकार व चिकित्सा विभाग को बिना सूचित किए व बिना अनुमति लिए ही अपने स्तर पर कोविड मरीजों पर प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए क्लीनिकल ट्रायल किया गया है। इसलिए इस नोटिस का तीन दिन में जवाब दिया जाए।
चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि भारत समेत दुनिया के तमाम देश कोरोना की दवा के बनाने में लगे हुए हैं, जब तक आईसीएमआर किसी दवा को अनुमति नहीं देता तब तक उसे बाजार में उतारना जायज नहीं होगा। किसी भी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ठीक है तो 14 दिनों में आइसोलेशन के बाद व्यक्ति स्वतः ही ठीक हो सकता है। उन्होंने कहा कि बिना प्रोसिजर को फोलो किए कोई भी क्लीनिकल ट्रायल अनुचित है। आईसीएमआर में परमिट किया है तो केन्द्र ने रोक क्यों लगाई। उत्तराखण्ड वाले कह रहे हैं कि हमसे तो इम्यून सिस्टम बूस्टअप करने की परमिशन ली थी। राजस्थान सरकार ने कोई परमिशन नहीं दी है। बिना सरकार की परमिशन के इस महामारी के दौर में जहां लाखों की मौत हो गई है। वहां यह दावा किया जाना कि हमने दवा खोज ली है, गलत है। बिना आधार के इस तरह की मार्केटिंग करना गलत है। यह भद्दा मजाक है। राज्य सरकार से किसी ने कोई बात नहीं की और ना ही हमने परमिशन दी। अगर दवा निर्माता कंपनी पतंजलि यह कहती कि हमारा प्रोडेक्ट इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए है तो हमें कोई आपत्ति नहीं थी। राज्य सरकार भी इम्यून सिस्टम मजबूत करने के लिए काढ़ा पिला रही है। हम यह नहीं करते कि आयुर्वेद में दम नहीं है, लेकिन दवा के रूप में प्रचारित करना कानूनन सही नही है।