
दुनिया भर के कई शहरों में हर कोने पर एक कैफे मिलने के साथ साथ-साथ यह भी सही है कि पानी और चाय के बाद, दुनिया भर में कॉफी का उपभोग सबसे ज्यादा होता है। कॉफी बीन्स की हर जगह भारी मांग है और प्रत्येक शीर्ष उत्पादक देश कई लाख किलोग्राम कॉफी बीन्स का उत्पादन करता है। इन सारे तथ्यों के बावजूद हाल में कैलिफोर्निया में कॉफी प्रेमियों के लिए अजीब स्थिति खड़ी हो गई है।
कॉफी से होता है कैंसर?
बीते दिनों एक न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा है कि कैलिफोर्निया के कॉफी विक्रेताओं को कॉफी के साथ कैंसर के खतरे की चेतावनी लगानी चाहिए। एक गैर-लाभकारी संस्था, काउंसिल फॉर एजुकेशन एंड रिसर्च ऑन टॉक्सिक्स की मांग थी कि कॉफी से जुड़ी इंडस्ट्री या तो कॉफी की प्रोसेसिंग के दौरान बनने वाले 'एक्रिलामाइड’ को हटा दे या फिर अपने उत्पादों पर कुछ इस किस्म की चेतावनी प्रकाशित करे कि 'कॉफी से कैंसर हो सकता है।’
चेतावनी देने का आदेश
एक्रिलामाइड वर्ष 2002 में स्वीडिश वैज्ञानिकों द्वारा पहली बार खोजा गया था। कॉफी में इस रसायन की मौजूदगी के कारण काउंसिल फॉर एजुकेशन एंड रिसर्च ऑन टॉक्सिक्स ने कैलिफोर्निया प्रांत में एक मुकदमा दायर किया कि स्टारबक्स जैसी कॉफी बेचने वाली कंपनियां कॉफी के साथ चेतावनी भरे संदेश भी दें कि कॉफी में कैंसर पैदा करने वाले रसायन शामिल हैं। कैलिफोर्निया के एक न्यायाधीश ने इस मुकदमे के पक्ष में फैसला सुनाया। अब आम जनता भ्रम में फंस गई है कि कैंसर के लिहाज से कॉफी सुरक्षित भी है या नहीं! खासतौर पर तब, जब कई शोध ने यहां तक कहा है कि कॉफी सेहत को बेहतर बना सकती है।
क्या कहता है डब्ल्यूएचओ?
कॉफी से कैंसर होने के साक्ष्य की कमी के चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2016 में कैंसरजनकों की सूची में से कॉफी को हटा दिया था। दूसरे शब्दों में संगठन यह निर्धारित नहीं कर पार रहा था कि कॉफी सुरक्षित है या नहीं! वहीं, अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च (एआईसीआर) तक का यह कहना है कि संस्थान ने अब तक कॉफी और कैंसर में कोई सीधा संबंध नहीं पाया है।
खुराक पर निर्भर असर
जहां तक एक्रिलामाइड की बात है, तो इसकी खुराक पर निर्भर करता है कि यह विषाक्त है या नहीं! किसी जानवर या व्यक्ति में इस रसायन की मात्रा एक खास बिंदु पर पहुंचने के बाद अंतत: वह स्तर आता है, जहां एक्रिलामाइड को खतरनाक माना जा सकता है लेकिन यह स्थिति आमतौर पर वास्तविक हालातों का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
क्या है एक्रिलामाइड?
जब कॉफी की फलियों को पहले चुना जाता है और फलों से निकाल दिया जाता है तो वे अंदर एक हल्का रंग लिए हुए होती हैं। भूनने या पकने के बाद कॉफी के दाने एक काले या हल्के भूरे रंग का शेड लेते हुए उस अद्भुत सुगंध को विकसित करते हैं, जिसे हम उस सुकून के साथ जुड़ते हैं, जो हमें कॉफी पीने के बाद महसूस होता है लेकिन कुकिंग की यही प्रक्रिया कुछ बाई-प्रोडक्ट भी लाती है। कॉफी को भूनने के दौरान बनने वाले ऐसे ही सह-उत्पादों में से एक है 'एक्रिलामाइड’। एक्रिलामाइड, स्वाभाविक रूप से उन प्रक्रियाओं में बनता है, जब पौधे और अनाज उच्च तापमान पर पकते हैं। इसे 'मैलार्ड रिएक्शन’ या आमतौर पर 'ब्राउनिंग रिएक्शन’ की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है यानी एक ऐसी प्रक्रिया, जिसमें उच्च तापमान शर्करा और अमीनो एसिड को ऐसे स्वरूप में बदल देता है, जो स्वाद बदलने वाले होते हैं और भूरे रंग के आहार में बदल जाते हैं। जैसे आलू, रोटी, बिस्कुट, सी-फूड या प्रोटीन से भरे दूसरे आहार या कॉफी जैसा पेय गर्म होकर भूरे होते हुए एक्रिलामाइड की फॉर्म ले लेते हैं।
क्या कहती हैं कंपनियां?
कॉफी में एक्रिलामाइड को लेकर कैलिफोर्निया में आए ताजा फैसले को लेकर कॉफी कंपनियों का कहना है कि यदि प्रोसेसिंग के दौरान एक्रिलामाइड रसायन को हटा दिया जाएगा तो इससे कॉफी का स्वाद प्रभावित होगा। साथ ही कंपनियों का यह भी तर्क है कि कॉफी बनाने की प्रक्रिया के दौरान बनने वाला यह रसायन इतनी कम मात्रा में होता है कि इससे कोई नुकसान नहीं हो सकता और अगर कोई नुकसान होता भी है तो कॉफी के दूसरे फायदे इस नुकसान की बराबरी कर देते हैं।
Published on:
05 Apr 2018 04:03 pm
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