इससे पहले बीते साल नवंबर माह से लेकर 31 मार्च तक मेंबरशिप की कमान विधायकों के हाथों में थी, लेकिन विधानसभा सत्र और विधायकों के लचर रवैए के चलते अभियान को गति नहीं मिल पाई थी और 31 मार्च तक डिजिटल मेंबरशिप काकड़ा 7 लाख के पारी ही पहुंच पाया था, जिसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने नाराजगी व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस को फटकार लगाई थी और मेंबरशिप के तारीख 15 दिन आगे बढ़ा दी थी।
मुख्यमंत्री के समक्ष भी उठी थी विधायकों को दूर रखने की मांग
दरअसल डिजिटल मेंबरशिप और ऑफलाइन मेंबरशिप अभियान को लेकर हाल ही में मुख्यमंत्री आवास पर हुई बैठक में भी विधायकों को दूर रखा गया था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने भी निवर्तमान ब्लॉक अध्यक्षों और जिलाध्यक्षों ने विधायकों को मेंबरशिप अभियान से दूर रखने की मांग की थी।
ब्लॉक अध्यक्षों का कहना था कि विधायकों की उदासीनता और भाई-भतीजावाद के चलते मेंबरशिप अभियान आगे नहीं बढ़ पाया था यहां तक की विधायकों ने मेंबरशिप अभियान के दौरान ना तो ब्लॉक अध्यक्षों से बात की नहीं और न ही जिलाध्यक्षों से। केवल अपने समर्थक कार्यकर्ताओं को मेंबरशिप अभियान की कमान संभला दी, जिससे लोग अभियान से नहीं जुड़ पाए।
जिला- ब्लॉक अध्यक्षों को मिलना चाहिए क्रेडिट
मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष जिला और ब्लॉक अध्यक्षों ने यह भी मांग रखी थी कि 15 अप्रैल तक जो टारगेट अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने राजस्थान को दिया है। जिला और ब्लॉक अध्यक्ष टारगेट को पार कर लेंगे लेकिन उसका क्रेडिट जिला और ब्लॉक अध्यक्षों को मिलना चाहिए न की विधायकों को।
जो ब्लॉक और जिलाध्यक्ष सबसे ज्यादा सदस्य बनाएगा उसे एआईसीसी और पीसीसी मेंबर बनाया जाए। गौरतलब है हाल ही में डिजिटल मेंबरशिप और ऑफ लाइन मेंबरशिप अभियान की समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिलाध्यक्षों व ब्लॉक अध्यक्षों को अलग-अलग टास्क दिए थे।
पीसीसी नेतृत्व भी कह चुके थे असहयोग की बात
इससे पहले डिजिटल मेंबरशिप और ऑनलाइन मेंबरशिप अभियान को गति नहीं मिलने को लेकर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी अभियान की सुस्त चाल के लिए मंत्री-विधायकों पर ठीकरा फोड़ा था और कहा था कि अभियान को मंत्री और विधायकों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है।