राजस्थान से राहुल गांधी की मौजूदा नाराज़गी की इंतहा का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सोमवार को उन्होंने राजस्थान में हार की समीक्षा बैठक में शामिल होने से ही साफ़ इंकार कर दिया कर दिया। इससे पहले राहुल ने शनिवार को दिल्ली में सीडब्यूसी की बैठक में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (
Ashok Gehlot ) सहित अन्य मुख्यमंत्रियों के बेटों को चुनाव लड़वाए जाने के समबन्ध में अपनी नाराज़गी प्रकट की थी।
दरअसल, सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी को बीते लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार राजस्थान से बहुत ज़्यादा उम्मीदें थीं। लगभग छह महीने पहले ही प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस देकर सत्ता में जगह बनाई थी। ऐसे में उनकी उम्मीदें प्रदेश से ज़्यादा बनने लगी थी।
लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने लगभग हर संभाग में ताबड़तोड़ रैलियां की थीं। इन तूफानी रैलियों में राहुल ने पूरी ताकत झोंक डाली थी। हर रैली में राहुल गांधी पीएम मोदी, केंद्र सरकार और राज्य की पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार पर हमलावर रहे। वहीं कांग्रेस पार्टी के मेनिफेस्टो में किये वादों और गहलोत सरकार के कामकाज को लेकर भी उन्होंने खूब वाहवाही लूटने की कोशिश की। लेकिन उनकी उम्मीदें वोटों में तब्दील नहीं हो सकीं और जनता ने उनकी पार्टी के खिलाफ जनादेश दिया। पार्टी लगातार दूसरी बार खाता खोलने में भी कामयाब नहीं हो सकी।
राहुल के करियर में राजस्थान रहा है ख़ास
इस बात से हर कोई वाकिफ है कि राहुल गांधी के राजनीतिक करियर में राजस्थान की कितनी बड़ी भूमिका रही है। दरअसल, 20 जनवरी 2013 को जयपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन ‘चिंतन शिविर’ में उन्हें कांग्रेस उपाध्यक्ष का पद सौंपा गया था। ये दिन राहुल के साथ-साथ पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए ऐतिहासिक दिन बन गया था।
कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले ही भाषण में राहुल ने भावुक बातों का ज़िक्र किया था। उस भाषण में राहुल ने कहा था, ”मां सोनिया गांधी मेरे पास आईं और कहा कि सत्ता जहर के समान है, जो ताकत के साथ खतरे भी लाती है।”
अपनी सीट भी बचा नहीं पाए राहुल
गौरतलब है कि इस बार का लोकसभा चुनाव 2019 राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छा नहीं रहा। नौबत इतनी खराब रही कि राहुल खुद भी अपनी परंपरागत सीट अमेठी नहीं बचा पाए। उन्हें उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार का सामना करना पड़ा। इस तरह के नतीजों के बाद राहुल गांधी ने इस्तीफे तक की पेशकश कर डाली है। हालांकि उसे सीडब्ल्यूसी से मंज़ूरी नहीं मिली।