scriptConstable से IPS बन गया ये नौजवान, सनी देओल की ‘इंडियन’ फिल्म ने बदल दी पूरी लाइफ | Constable Cracked UPSC 2017 For Becoming an IPS | Patrika News

Constable से IPS बन गया ये नौजवान, सनी देओल की ‘इंडियन’ फिल्म ने बदल दी पूरी लाइफ

locationजयपुरPublished: May 14, 2018 09:27:38 am

Submitted by:

dinesh

Constable से IPS बनने की कहानी, मनोज रावत की जुबानी…

manoj ravat
– पुष्पेन्द्र शर्मा…
जयपुर। रील लाइफ के कुछ किरदार ऐसे होते हैं, जो रियल लाइफ में लोगों की जिंदगी बदल देते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है आइएएस में ऑल इंडिया 824 रैंक हासिल करने वाले मनोज रावत की। विराटनगर के 29 साल के मनोज ने 13 साल की उम्र में Sunny Deol स्टारर ‘इंडियन’ फिल्म देखी थी, बस उसी से इंस्पायर होकर उन्होंने IPS बनने की ठान ली और आज खुद सनी देओल ने उनकी सफलता पर उन्हें बधाई दी है। मनोज के अनुसार, यह उनका चौथा प्रयास था। इससे पहले वे 2014, 2015 में प्रीलिम्स और 2016 में मेन्स क्लियर कर चुके थे। मनोज का कहना है कि यदि इस बार भी उन्हें IPS अलॉट नहीं हुआ तो वे एक बार फिर से प्रयास करेंगे।
मनोज की कहानी कई लोगों के लिए इंस्पिरेशन हो सकती है। मनोज इसकी शुरुआत कुछ ऐसे करते हैं…
जब आइपीएस बनने की सोची तो सच बताऊं इसका मतलब भी नहीं जानता था, लेकिन जैसे-जैसे बड़ा होता गया, तो उतना ही बड़ा लक्ष्य और बड़ी जिम्मेदारी समझ आने लगी। गांव में किसी ने भी यह ख्वाब नहीं देखा था। पापा प्राइवेट टीचर हैं और मां हाउसवाइफ। हम तीन भाई-बहिन हैं। मैं सबसे बड़ा हूं। जब 2008 में पापा की तबीयत खराब हो गई थी, तो उन्होंने बीमारी के चलते ड्यूटी पर जाना बंद कर दिया था। ऐसे में परिवार में बड़ा होने के नाते जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। उसी दौरान कॉन्स्टेबल की वैकेंसी भी निकली हुई थी। मैंने सोचा कि मेरे जॉब करने से फैमिली को सपोर्ट मिल जाएगा।
दूसरे प्रयास में मैंने कॉन्स्टेबल की जॉब में सफलता हासिल कर ली, लेकिन लक्ष्य तो मन में सफलता की सीढिय़ां चढ़े जा रहा था। मैंने अभी तक अपने सपने को किसी से साझा नहीं किया था। मैंने सोचा कि जॉब के साथ पढ़ाई हो जाएगी, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। मई 2013 में मैंने कॉन्स्टेबल की जॉब छोडकऱ ज्यूडीशरी में एलडीसी की जॉब जॉइन कर ली। कोर्ट में काफी काम होने की वजह से वहां भी तैयारी का समय नहीं मिल पाता था और उम्र भी ज्यादा हो रही थी। फिर जब 2013 में ही छोटे भाई की कॉन्स्टेबल की जॉब लगी तो उस दौरान मैंने मां-पापा को आइपीएस के सपने के बारे में बताया। उन्होंने मेरा साथ दिया और मैंने जॉब छोड़ दी।
चार साल में सिर्फ एक शादी अटेंड की
मैंने कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। 2014 में मैंने जेआरएफ क्लियर किया। पीएचडी एडमिशन के बाद मुझे एक्स्ट्रा काम करना पड़ रहा था, लेकिन एक अच्छी बात यह थी कि मुझे फैलोशिप के जो पैसे मिल रहे थे, उससे मैं सेल्फ डिपेंडेंट हो गया। हालांकि पैरेंट्स ने कभी फाइनेंशियल सपोर्ट से मना नहीं किया। 2015 में ही मैंने सीआइएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंड के लिए क्वालिफाई कर लिया, लेकिन लक्ष्य तो एक ही था और उसके लिए प्रयास भी जारी था। इसलिए इसे छोडकऱ मैंने तैयारी पर ही ध्यान दिया। पिछले चार साल में मैंने सिर्फ एक खास दोस्त की शादी अटेंड की, न तो किसी दोस्त, रिश्तेदार के गया और न ही सोशल मीडिया पर समय बिताया। एक बार कुछ गेम्स डाउनलोड कर लिए थे, लेकिन जब इस पर आधा-एक घंटा खराब होने लगा तो मैंने इन्हेें डिलीट कर दिया।
टार्गेट किया सेट
मनोज का कहना है कि कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी करने वाले यूथ अक्सर ये शिकायत करते हैं कि उन्हें सफलता नहीं मिलती, लेकिन मुझे लगता है कि यदि मेहनत ईमानदारी से की गई है तो सफलता निश्चित ही मिलेगी। तमाम एग्जाम देने के बजाए एक टार्गेट सेट कर लिया जाए, मेहनत की जाए और आत्मविश्वास को रखा जाए तो सफलता मिल सकती है। यूपीएससी के लिए इंग्लिश भी कोई बैरियर नहीं है। मैंने कई एग्जाम दिए लेकिन मेरा टार्गेट हमेशा आइपीएस रखा और इसमें मैं सफलता के बहुत करीब पहुंच चुका हूं। मेरी इस सफलता पर सनी देओल और आइपीएस एसोसिएशन ने बधाई दी है।
इंटरव्यू का सवाल
लगातार एग्जाम से मैंने अपनी वीकनेस पर काम किया। जैसे शुरू में मेरी राइटिंग प्रेक्ट्सि अच्छी नहीं थी, इस पर मैंने मेहनत की। लास्ट वाले अटेम्प्ट में जब इंटरव्यू की बारी आई तो मुझसे पूछा गया कि आपने इतनी पढ़ाई क्यों की? मैंने कहा ताकि मैं एक बेहतर इंसान बन सकूं। इस पर इंटरव्यूअर ने कहा कि क्या अनपढ़ अच्छा इंसान नहीं हो सकता? तो मैंने कहा कि पढ़ा-लिखा होने से आपमें अच्छे निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है। तब आप भावनात्मक रूप से निर्णय न लेकर तार्किक रूप से अच्छे-बुरे का चयन कर सकते हैं।
जिसने मुझे किया मोटिवेट
जब मुझे दो अटेम्प्ट में सफलता नहीं मिली तो लगा कि मैंने गलत डिसीजन तो नहीं ले लिया। थोड़ी टेंशन भी हुई, लेकिन मैंने आत्मविश्वास का साथ नहीं छोड़ा। मैं बस यही सोचता था कि मुझे अपना मैक्सिमम एफर्ट देना है। मेरे घरवालों ने कभी मेरी पढ़ाई के बारे में कोई सवाल नहीं किए तो मैंने भी उनका विश्वास नहीं टूटने दिया।
गांव में बदलाव
गांव में अब काफी बदलाव आ गया है। बचपन में मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन जब गांववालों को मेरी सफलता के बारे में पता चला तो सभी समुदायों के लोगों ने मेरा सम्मान किया।
हर व्यक्ति को मिले न्याय
मनोज का कहना है कि यदि मेरा चयन आइपीएस में होता है तो मेरी प्राथमिकता महिलाओं को सम्मान दिलाना रहेगी। दूसरी ओर पुलिस की छवि को सुधारना चाहूंगा। मैंने कॉन्स्टेबल रहते कई समस्याएं महसूस की हैं, लेकिन उनके पीछे कई कारण होते हैं। मैं समाज के हर व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करूंगा।

ट्रेंडिंग वीडियो