महेश नगर निवासी नीता शर्मा ने उपभोक्ता आयोग में परिवाद दाखिल किया। जिसमें कहा कि 8 सितंबर 2014 को उसने डॉ उम्मेद हॉस्पिटल जोधपुर में कार्यरत डॉ मेहता को 200 रुपए फीस देकर दिखाया। डॉक्टर ने पर्ची पर उसके थायराइड होने सहित अन्य सभी जानकारियां लिखी। डॉक्टर की लिखी सभी जांच करवाने और आवश्यक दिशा निर्देश का पालन किया। उसने 20 फरवरी 2015 को एक बेटे को जन्म दिया। जन्म के समय उसका वजन 2.8 किलो था लेकिन बच्चा देखने में अन्य बच्चों से अलग लग रहा था। नीता शर्मा के बार बार कहने के बाद बच्चे को शिशु रोग विशेषज्ञ से बच्चे की जांच हुई। जिसने देखते ही कहा कि बच्चा डाउन सिंड्रोम रोग से पीड़ित है उसे हमेशा माता पिता पर आश्रित रहना होगा और बुद्धि का विकास नौ वर्ष आयु के बच्चे जितनी रहेगी। नीता शर्मा ने कहा कि गर्भधारण करने के समय आयु 38 साल होने और थाइराइड लेने की वजह से भ्रूण में विकार होने की संभावना होती है। उसकी विशेष जांच होनी चाहिए थी ताकि गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी मिल सके। जिसके जवाब में डॉक्टर ने कहा कि मामला जोधपुर से संबंधित है उसकी सुनवाई जोधपुर सर्किट बेंच में होनी चाहिए। डॉ मेडिकल कॉलेज में सेवारत है ऐसे में उससे कोई फीस ली हो ऐसी कोई रसीद नही है उसे उपभोक्ता नहीं माना जा सकता है। उसने केवल परेशान करने के लिए दो साल बाद परिवाद दाखिल किया है। सभी तरह की अग्रिम जांच के लिए परिवादी को बताया था लेकिन परिवादी ने संभावना के आधार पर जांच के लिए करीबन 15 हजार रुपए खर्च करने से इनकार कर दिया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद आयोग ने कहा कि ज्यादा आयु और थाइराइड बीमारी की दवाइयां चल रही थी। इसके बाद भी साधारण अल्ट्रासाउंड करवाया गया। आधुनिक या अग्रिम जांच नहीं करवाई गई। डॉक्टर ने बिना स्कल और केयर के इलाज किया है जबकि वह स्त्री और प्रसुति रोग विशेषज्ञ थी। मामले में चिकित्सालय को आयोग ने दोषी मानने से इनकार करते हुए कहा कि डॉ केवल अस्पताल में कार्यरत थी इसके लिए अस्पताल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। आयोग के अध्यक्ष कमल कुमार बागड़ी ने डॉक्टर को एक मुश्त 25 लाख रुपए चुकाने के आदेश दिए।