राज्य उपभोक्ता संघ कुछ समय पहले तक लगातार लाभ में था। यहां तक कि लाभ हर साल बढ़ते हुए वर्ष 2016-17 में 335 लाख रुपए तक पहुंच गया था। इसके बाद संघ लगातार घाटे की ओर लुढक़ता गया। वर्ष 2017-18 में लाभ घटकर मात्र 166 लाख रुपए रह गया। चौंकाने वाली स्थिति वर्ष 2018-19 में रही जब लाभ के बजाय 13 लाख रुपए का घाटा हुआ। ऐसे में कर्मचारी चिंतित है कि कहीं वेतन-भत्तों पर असर न पड़ जाए। आशंका इसलिए भी है कि यहां कुछ कर्मचारियों का वेतन लगभग डेढ़ लाख रुपए है। यह संस्था के मुखिया (प्रबंध निदेशक) ही नहीं बल्कि विभाग के मुखिया आइएएस अधिकारी के समकक्ष या इससे अधिक है। इससे भी अधिक खर्च आवभगत के रूप में किया जा रहा है।
इसलिए डूबता गया कानफैड
सहकारी विभाग के हर कार्यक्रम में होने वाला खर्च आवभगत के नाम से दर्ज किया जाता है। यही नहीं, विपणन अनुभाग से अधिकारियों के घर साामान पहुंचाने की भी परम्परा है। इसे जलपान खर्च के रूप में दर्ज किया जाता है। इसमें कई अधिकारियों के घर की रसोई का खर्च भी शामिल है। यही नहीं, महंगे उपकरण व अन्य सामान अधिकारियों के यहां पहुंचाकर उसे पूंजीगत खर्च में शामिल कर लिया जाता है। कर्मचारियों ने उच्चाधिकारियों से ऐसे मामलों की जांच की मांग की है।
सहकारी विभाग के हर कार्यक्रम में होने वाला खर्च आवभगत के नाम से दर्ज किया जाता है। यही नहीं, विपणन अनुभाग से अधिकारियों के घर साामान पहुंचाने की भी परम्परा है। इसे जलपान खर्च के रूप में दर्ज किया जाता है। इसमें कई अधिकारियों के घर की रसोई का खर्च भी शामिल है। यही नहीं, महंगे उपकरण व अन्य सामान अधिकारियों के यहां पहुंचाकर उसे पूंजीगत खर्च में शामिल कर लिया जाता है। कर्मचारियों ने उच्चाधिकारियों से ऐसे मामलों की जांच की मांग की है।
कंगाली में यों किया आटा गीला
इस बीच कुछ माह पहले भारी किराए पर विभागीय दुकानें (डिपार्टमेंटल स्टोर) खोल दी गई। एक से ढाई लाख रुपए प्रतिमाह किराए पर खोली गई इन दुकानों पर आमदनी तो दूर, कर्मचारियों का खर्चा भी नहीं निकला। ऐसी दुकानें गत माह ही बंद हुई हैं। विभाग में सबसे अधिक आमदनी चिकित्सा अनुभाग में होती थी। यहां दवा में खरीद से लेकर बिक्री तक में कमीशन का का खेल उजागर होने पर स्थिति उलट गई। अनुभाग में दवाओं के विक्रय में अचानक गुणात्मक रूप से कमी आई है। इससे लाभ भी बहुत कम हुआ है। कर्मचारियों ने आशंका जताई है कि वर्ष 2019-20 में संस्था की स्थिति और विकट हो सकती है।
इस बीच कुछ माह पहले भारी किराए पर विभागीय दुकानें (डिपार्टमेंटल स्टोर) खोल दी गई। एक से ढाई लाख रुपए प्रतिमाह किराए पर खोली गई इन दुकानों पर आमदनी तो दूर, कर्मचारियों का खर्चा भी नहीं निकला। ऐसी दुकानें गत माह ही बंद हुई हैं। विभाग में सबसे अधिक आमदनी चिकित्सा अनुभाग में होती थी। यहां दवा में खरीद से लेकर बिक्री तक में कमीशन का का खेल उजागर होने पर स्थिति उलट गई। अनुभाग में दवाओं के विक्रय में अचानक गुणात्मक रूप से कमी आई है। इससे लाभ भी बहुत कम हुआ है। कर्मचारियों ने आशंका जताई है कि वर्ष 2019-20 में संस्था की स्थिति और विकट हो सकती है।