स्थानीय लोगों ने बातचीत में स्वीकार किया कि निकाय चुनाव में कोरोना गाइडलाइन तो जैसे कागजों में ही कहीं दबकर रह गई है। संक्रमण की रोकथाम को ध्यान में रख जो सरकारी दावे किए गए थे वो हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। पूरे शहर में निर्वाचन आयोग की सख्ती भी बेअसर नजर आ रही है। शहर के वार्डों में चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ रही हैं उससे तो यही संकेत मिल रहे हैं।
शहर के कई वार्डों में चुनाव कार्यालय का उद्घाटन हो या घर-घर प्रचार जगह-जगह समर्थकों की भीड़ बिना मास्क नजर आ रही है। कई प्रत्याशी तो स्वयं वार्ड में पहचान कराने के उद्देश्य से मास्क घर भूलकर आ रहे हैं। देर रात तक चुनावी कार्यालयों में रणनीति के बहाने जुट रहे लोग भी कोरोना से बेखबर दिख रहे हैं। कॉलोनियों में प्रत्याशियों का स्वागत सत्कार हो या मंच पर माल्यार्पण समारोह सभी में वायरस की नजरअंदाजी झलक रही है। महामारी के दौर में खतरे की दहलीज पर खड़े बुजुर्गों को रिझाने का भी कोई अवसर इन चुनावों में नहीं गंवाया जा रहा। संक्रमण के खौफ के बावजूद उन्हें सभाओं में आमंत्रित किया जा रहा है। उनके करीब जाकर अभिवादन का दस्तूर निभाया जा रहा है। जबकि संक्रमित हवा के झोंके मात्र से वे चपेट में आ सकते हैं।
नगर निगम चुनाव में यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि वोट के लिए घूम रही भीड़ में कोई संक्रमित हो सकता है अथवा कोई ऐसा भी हो सकता है जो पूर्व में खुद या उनके करीबी वायरस की चपेट में आए हों। ऐसे में दूसरों के लिए खतरा अभी टला नहीं है।
बहुत से लोगों का कहना था कि शहर की सरकार के लिए निकाय चुनाव अहम हैं लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है महामारी के दौर में सावधानी के साथ पूरी चुनावी कवायद में शामिल होना। निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों की पालना करना और यह ध्यान में रखना कि कहीं नियमों की अवहेलना न हो जाए जिसके कारण दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़े।