प्रदेश के सरकारी और निजी अस्पतालों में इन दिनों ऐसे मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है। ऐसे में डॉक्टरों की ओर से व्यायाम तथा अन्य कई तरह के टिप्स देकर लोगों को जागरुक किया जा रहा है। डॉक्टरों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को अपने शरीर पर दबाव महसूस हो रहा है तो यह एक बुरी खबर हो सकती है, कि वह बैक पेन, गर्दन तथा कंधों में सूजन जैसी मस्कुलोस्केलेटल (पेशीय संबंधी) परेशानी की तरफ बढ़ रहे हैं। खासकर सूजन की परेशानी ‘एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस’ यानि एएस हो सकती है। मुख्यरूप से यह रीढ़ के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति होती है। अक्सर इस समस्या को नजर अंदाज कर दिया जाता है या इसे आम पीठ का दर्द मान लिया जाता है।
‘एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस’ शरीर की हड्डियों में दर्द, अकड़न और सूजन पैदा करने वाली ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक ताकतें गलती से शरीर पर ही हमला करती हैं। नारायण अस्पताल के कंसल्टेंट रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. राहुल जैन ने जागरुकता कार्यक्रम में बताया कि यह बीमारी नौजवानों को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। 20 से 40 वर्ष तक के युवा और टीनेजर्स इसकी ज्यादा चपेट में आते हैं। ‘एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस’ में रीढ़ की हड्डी जरूरत से ज्यादा बढ़ने के कारण सख्त हो जाती है। एएस बीमारी से पीडि़त मरीजों में एचएलए बी-27 नाम की जीन पाई जाती है, जिसका ब्लड टेस्ट से पता लगाया जा सकता है। यह बीमारी का न तो वास्तविक कारण है और न ही इसका मतलब यह है कि जिस व्यक्ति के शरीर में यह जीन होगा, वह एएस से ही पीड़ित होगा।
इस बीमारी से निपटने में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि एएस से पीड़ित मरीज का पूरा ध्यान सिर्फ दर्द से राहत पाने पर रहता है। पेनकिलर्स और व्यायाम से स्थिति को सुधारने में कुछ हद तक मदद मिल सकती है। लेकिन इसके इलाज के लिए प्रभावी विकल्प जैसे बायोलॉजिक्स अपनाए जाएं तो बीमारी को कम किया जा सकता है। बीमारी की जांच और इलाज में देरी से मरीजों के व्हीलचेयर के भरोसे चलने की नौबत आ सकती है।