डैनियल और क्रिस्टीन ने ‘द शिफ्ट प्रोजेक्ट’ शोध से न्यूनतम वेतन, काम के अनिश्चित घंटे और अनिश्चित वर्क शिड्यूल पर अमरीका के बड़े शहरों में देश की 80 सबसे बड़ी फूड सर्विस कंपनियों और रिटेल चेन के 84 हजार से ज्यादा श्रमिकों पर सर्वे किया। दोनों जानना चाहते थे कि इतने दबाव में काम करने वाले कर्मचारियों की मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है। अध्ययन में सामने आया कि लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को दो सप्ताह से कम के अंतराल में अपना साप्ताहिक कार्य शेड्यूल मिलता है। 16 फीसदी श्रमिकों को महज 72 घंटे पहले इसकी जानकारी मिलती है। इतने कम समय में परिवार, बच्चों की देखभाल और अन्य कामों के लिए समय निकालना मुश्किल है। रात 11 बजे स्टोर बंद करने के कुछ ही घंटों बाद उन्हें वापस इसे खोलना होता है। इसे ‘क्लोपिंग’ कहा जाता है। एक चौथाई कर्मचारियों को ऑर्डर लेने के लिए हमेशा कॉल पर बने रहने के लिए कहा जाता है।
अत्यधिक दबाव वाला वर्क शिड्यूल कर्मचारियों की सेहत और मनोदशा पर बुरा असर डाल रहा है। 26 फीसदी श्रमिक किसी न किसी प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझ रहे थे। घबराहट, निराशा और नकारात्मक भावनाओं से भी ये लोग परेशान थे। न्यूनतम आय वाले वाले कर्मचारियों में यह समस्या ज्यादा थी। जिन 14 फीसदी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द की गई थी उन्होंने मानसिक रूप से ज्यादा परेशान होना बताया। 24 प्रतिशत ने खराब नींद की शिकायत की। एक चौथाई कर्मचारियों को ऑर्डर लेने के लिए हमेशा कॉल पर बने रहने के लिए कहा जाता है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ समस्या ही बढ़ रही है। साल 2014 के बाद से सैन फ्रांसिस्को, सिएटल, न्यूयॉर्क और फिलाडेल्फिया ने शेड्यूलिंग नियमों में सुधार किया है। सिएटल में यह नियम बनाया है कि नियोक्ताओं को कम से कम दो सप्ताह के कार्य शेड्यूल की सूचना कर्मचारियों को पहले से देनी होगी। अगर वे इसमें कोई भी बदलाव करते हैं तो उन्हें ओवरटाइम के लिए कर्मचारियों को अतिरिक्त भुगतान भी करना होगा। कर्मचारियों की शिफ्टों के बीच 10 घंटे का आराम भी देना होगा।