कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पूजा की जाती है। इस पर्व को सूर्य षष्ठी पूजा या डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें कठिन व्रत रखा जाता है जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन घर में प्राय: कद्दू की सब्जी बनाई जाती है। अगले दिन खरना होता है जिस दिन से उपवास प्रारंभ होता है।
इस दिन छठी माई के प्रसाद के रूप में खासतौर पर ठेकुआ— घी और आटे का पकवान बनाया जाता है। गुड़ की खीर, चावल, दूध के पकवान भी बनाते हैं और फल, सब्जियों से पूजा की जाती है। तीसरा दिन सबसे अहम होता है। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर संध्या अर्घ्य यानि डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अगले दिन पूजा के साथ पर्व समाप्त होता है।
छठ माता को सूर्य की बहन मानते हैं। मान्यता है कि सूर्य आराधना से प्रसन्न होकर छठ माता सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं। इस वर्ष 18 नवंबर को नहाय खाय से पर्व प्रारंभ होगा. 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को संध्या अर्घ्य और 21 नवंबर को उषा अर्घ्य के साथ छठ पर्व का समापन होगा।