राज्य मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान पत्रिका में ‘बिंदौली रोकने की आशंका पर जाप्ते के साथ पहुंचे थानेदार, फिर भी दूल्हे को घोडी से उतारा, मारपीट’ शीर्षक से प्रकाशित खबर के आधार पर प्रसंज्ञान लिया है। आयोग में 26 जून को सुनवाई होगी।
उधर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर प्रसंज्ञान लिया है। राष्ट्रीय आयोग ने घटना के समय पीडि़त परिवार को राहत दिलाने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में जानकारी मांगी है।
जताई चिंता
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जागरुकता के बावजूद दलित वर्ग के साथ हो रहे अत्याचार की घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यह वर्ग पुलिस को पहले से ही सूचना देने के बावजूद आज तक सुरक्षित नहीं है। दलित वर्ग के सुरक्षा, स्वतंत्रता,समानता व सम्मान के अधिकार की अवहेलना हो रही है। यह सब राज्य के
तंत्र की लापरवाही के कारण हो रहा है। आयोग ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देकर कहा है कि भीलवाड़ा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक आरोपों को मानने से इनकार कर रहे हैं।
हालांकि इस मामले में एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज हो चुका है। आयोग के
ध्यान में यह भी आया है कि 2010 में इसी दूल्हे के बड़े भाई को भी गांव की ऊंची जाति के लोगों ने घोडे से उतार दिया था। बिन्दौली को लेकर इस परिवार को नियमित धमकियां मिल रही थी। धमकी के बारे में पुलिस को पहले ही सूचना दे दी गई थी। इसके बावजूद महिलाओं के कपडे फाड दिए गए, पत्थ्रर और डंडों से हमला किया गया। फिर भी पुलिस केवल मूकदर्शक बनी रही उसने कोई कार्रवाई नहीं की।