ऐसे हुई थी स्थापना पंडित गोपाल लाल शास्त्री ने बताया कि नाथावतों के इतिहास के अनुसार ठाकुर करण सिंह ने 1552 में चौमूं प्राचीन गढ़ बसाने की हरी टूणी गढ़वाई। उस समय उन्होंने चौमूं नगर बसा कर प्राचीन गढ की सुरक्षा को लेकर कांटों की बाड़ झाड़ का परकोटा बनवाया। कालांतर में उनके पुत्र ठाकुर सुखसिंह ने पक्के परकोटे का निर्माण करवाया। फि र सुखसिंह के बाद उनके पुत्र रघुनाथ सिंह ने सन् 1746 में प्राचीन गढ़ और प्रजा की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए पूर्व में सूरजपोल बावड़ी गेट का निर्माण करवाया। पश्चिम में होली दरवाजा बाहर जयपोल गेट का निर्माण करवाया। उत्तर दिशा में पीवाले कुएं के पास दुर्गापोल का निर्माण करवाया और इसके बाद दक्षिण दिशा में रावण गेट स्थित बजरंग पोल गेट का निर्माण करवाया। प्राचीन गढ़ की सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए नहर का भी निर्माण करवाया जो आज जीर्णशीर्ण अवस्था में है।
दरवाजों के आधार पर चौमूं पड़ा नाम जिस समय चौमूं बसा उस समय चौमूं का नाम रघुनाथ गढ़ था। इसके बाद चारों दरवाजों के निर्माण के बाद इनका नाम चौमूं पड़ा। पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में ऐतिहासिक गेट होने के कारण पहले शहर का नाम चहुमूं था। इसके बाद लोगों के मुंह से चहुमूं की जगह चौमूं निकलने लगा। इसके बाद कस्बे का नाम चौमूं रखा गया।
फैल रहा अतिक्रमण शहर में अतिक्रमण होना तो आम बात है लेकिन ऐतिहासिक दरवाजों को भी लोगों ने अतिक्रमण की चपेट में ले रखा है। अतिक्रमियों के कारण वाहन चाल व राहगीरों को परेशानी सामना करना पड़ रहा है। दरवाजों पर हो रहे अतिक्रमण को पालिका प्रशासन हटाने के नाम पर चुप्पी साधे बैठा है।
चारों दरवाजों से हो सकती है बड़ी दुर्घटना मुख्य बस स्टैंड स्थित सूरजपोल, पीवाले कुएं के पास स्थित दुर्गा पोल, रावण गेट स्थित बजरंग पोल और होली दरवाजा स्थित जयपोल गेट की हालत जर्जर होती जा रही है। इन दरवाजों से हजारों लोगों पुराने समय में लगे हुए दरवाजे जगह-जगह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इन जर्जर गेर्टां के कारण कभी भी बाजारों में बड़ा हादसा हो सकता है।
50 लाख रुपए हो गए लैप्स कुछ साल पूर्व चारों दरवाजों के सौंदर्यीकरण और साज-सजा को लेकर विरासत संरक्षण के तहत नगरपालिका में 50 लाख रुपए आए थे। लेकिन नगरपालिका ने समय रहते इन 50 लाख की लागत से न तो दरवाजों की मरम्मत हुई और न ही साज-सजा। ऐसे में कार्य अवधि पूरी हो जाने के बाद विरासत संरक्षण के तहत आए 50 लाख रुपए लैप्स हो गए।
विरासत संरक्षण के तहत वर्षों पहले दरवाजों के सौंदर्यीकरण के लिए 50 लाख रुपए नगरपालिका कोष में आए थे। समय पर दरवाजों का कार्य नहीं होने के कारण 50 लाख रुपए लैप्स हो गए। अब फिर दरवाजों के सौंदर्यीकरण के लिए विरासत संरक्षण को पत्र लिखकर दरवाजों के सौंदर्यीकरण के लिए अवगत करवाया गया। – अर्चना कुमावत, अध्यक्ष, नगरपालिका चौमूं
राजा-महाराजाओं के समय में बने दरवाजों के जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़े होने की जानकारी है। इनकी मरम्मत का कार्य शीघ्र ही करवाया जाएगा। – सलीम खान, अधिशाषी अधिकारी चौमूं