एडवोकेट रामबाबू शर्मा ने बताया कि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों को दरकिनार कर तकनीकी कारणों के आधार पर आरोपियों को संदेह का लाभ देकर बरी किया है। जबकि देश की संप्रूता से जुडे़ मामले में किसी भी अभियुक्त को मात्र तकनीकी आधार पर संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता। दरगाह बम विस्फोट का मामला मालेगांव और मक्का मस्जिद विस्फोट से जुड़ा हुआ है। तीनों मामलों में अहम सबूत और आरोपी आपस में जुडे़ हुए हैं। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने इन्हें अनदेखा किया और सात आरोपियों को गलत बरी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने दो दोषियों को उनके अपराध के अनुसार कम सजा दी है।
दो को सजा आठ हुए बरी-
दरगाह बम विस्फोट मामले में एनआईए स्पेशल कोर्ट ने दो अभियुक्त भावेश पटेल और देवेन्द्र गुप्ता केा दोषी मानकर आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया था। दोनों की अपील पर हाईकोर्ट सजा स्थगित कर जमानत पर रिहा कर चुका है। कोर्ट ने सुनील जोशी को भी दोषी माना था लेकिन,जोशी की २००७ में ही हत्या हो चुकी थी। ट्रायल कोर्ट ने स्वामी असीमानंद सहित चंद्रशेखर लेवे,मुकेश वासाणी,भरत मोहन रतेश्वर,लोकेश शर्मा,मेहुल कुमार और हर्षद सोलंकी को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया था। इस मामले में तीन आरोपी संदीप डांगे,रामचंद्र कलसांगरा और सुरेश नायर फरार थे। इनमें से सुरेश नायर को करीब एक साल पहले गिरफ्तार कर लिया था और उसे भी हाल ही में कोर्ट ने बरी कर दिया है।