भगवान दत्तात्रेयजी नाथ संप्रदाय के जनक के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था। इसलिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर उनकी जयंती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार कहे जाते हैं जबकि शैव इनकी भगवान शिव के रूप में पूजा करते हैं। वैसे वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के ही स्वरूप में सर्वमान्य हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार दत्त पूर्णिमा पर सुबह स्नान कर सूर्यदेव को जल अर्पित कर भगवान दत्तात्रेय का ध्यान करते हुए व्रत व पूजा का संकल्प लें। इसके बाद विधिविधान से उनकी पूजा करें। भगवान विष्णु और शिवजी की भी पूजा करें। पूजा प्रदोष काल में करना उत्तम होगा। भगवान दत्तात्रेय की प्रसन्नता के लिए इस दिन श्री दत्तात्रेय स्त्रोत का पाठ जरूर करें।
दत्तात्रेयजी के बालस्वरूप की पूजा का विधान है जिसका राज पौराणिक कथा में छुपा है। कथा के अनुसार माता पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती ने देवी अनुसूया का पतिव्रत धर्म भ्रष्ट करने की कोशिश की। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अनुसूयाजी के पास पहुंचाया। अपने पतिव्रत धर्म के बल पर देवी अनुसूया ने उनकी मंशा जान ली। उन्होंने अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़ककर उनको बालक बना दिया।
तीनों देवों को देवी अनुसूया बालरूप में पालने लगीं। जब माता पार्वती, लक्ष्मी तथा सरस्वती को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने देवी अनुसूया से क्षमा मांगी और अपने पति लौटाने को कहा। माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरूप में ही रहना होगा। तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंश मिलकर भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति हुई।