हाल ही में एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि हाथी गांव के 102 हाथियों में से 19 हाथी एकतरफ दाईं या बाईं आंख या फिर दोनों आंखों से नहीं देख पा रहे हैं। वह कोई भी काम करने के लिए अनफिट हैं। अगर ऐसे जानवरों का उपयोग सार्वजनिक स्थानों पर और सवारी के लिए किया जाता है तो वह आमजीवन की सुरक्षा के लिए खतरा है। इसके अलावा 91 हाथियों की टीबी की जांच में 10 हाथियों में ट्यूबरक्लॉसिस पॉजिटिव पाया गया। फिर भी उन्हें अन्य हाथियों के मध्य रहने की अनुमति दी गई और टूरिस्ट्स की सवारी के उपयोग में लिया गया। टीबी एक जूनोटिक बीमारी है जिससे इंसानों और जानवरों के लिए खतरा है। वर्ष २०१८ में 4 हाथियों में से दो, हाथी नंबर 99 और 64 रानी और चंचल में एडब्ल्यूबीआई निरीक्षण के दौरान ट्यूबरक्लॉसिस पॉजिटिव आया था, लेकिन वन विभाग ने उन्हें कुछ ही माह में टीबी मुक्त घोषित कर दिया जबकि वास्तव में किसी भी हाथी को टीबी से उबारने में कम से कम छह से १२ महीने का गहन उपचार करना पड़ता है। ये तथ्य चिंताजनक हैं। न तो वन विभाग, न पशुपालन विभाग और न ही मालिक इन मौतों के लिए जिम्मेदारी ले रहे हैं। कार्यकर्ताओं को डर है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो हाथी गांव में और हाथी खत्म हो जाएंगे,जिससे हाथियों का यह सांस्कृतिक केंद्र हाथियों के लिए ही अयोग्य हो जाएगा।