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अदूरदर्शिता की निशानी… नोटबंदी और जीएसटी की कहानी !

locationजयपुरPublished: Nov 15, 2017 09:40:52 pm

चाहे कितने भी बदलाव हुए हों, जयपुर और सूरत के कपड़ा उद्यमियों और व्यापारियों के हाथ तो अभी तक मायूसी ही आई है।

GST in India
-राजेंद्र शर्मा-

अदूरदर्शिता…अनुभवहीनता…अज्ञानता जैसे अवगुण जब एक निर्णय में परीलक्षित होते हैं, तो उसका खमियाजा तमाम पक्षों को भुगतना पड़ता है। मोदी सरकार बने साढ़े तीन साल हुए। सरकार दो मर्तबा काम करती दिखी, एक तो नोटबंदी के समय और दूसरे जीएसटी लागू करते वक्त। मगर, दुर्भाग्य से दोनों बड़े फैसलों में ये तीनों अवगुण तब प्रकट हुए जब इनमें बार-बार बदलाव करने पड़े। जो अब भी जारी है। नोटबंदी को ही लें, 50 दिन का समय मांगा था प्रधानमंत्री मोदी ने सपनों का भारत देने के लिए। हुआ क्या, सपनों का देश तो दूर की कौड़ी रहा, अलबत्ता इन 50 दिनों में नियम 70 बार बदल दिए गए।
आलम यह था कि एक नियम समझ आता, तब तक दूसरा आ जाता। कमोबेश, जीएसटी को लागू करने में भी यही हुआ। पहले कहा गया, कड़वी दवा पीनी पड़ेगी, जब पता चला कि इस दवा की कड़वाहट ज्यादा ही हो गई तो पहले बदलाव हुए…फिर…दूसरे…तीसरे…और अब तक एक दर्जन से ज्यादा बार तमाम चीजों के स्लैब बदले गए। अभी भी कहां अंतिम पड़ाव। अभी भी पांच दर्जन करीब वस्तुएं 28 फीसदी के स्लैब में हैं, कितने दिन रहेंगी, कोई नहीं कह सकता। और तो और, वोट के लिए किस वस्तु को जीएसटी के दायरे से ही निकाल दिया जाए, इसका भी पता नहीं।
मोदी सरकार ने तो देश के बड़े आर्थिक कदमों जीएसटी और नोटबंदी को भी क्रिकेट की तरह रोमांचक बना दिया, जिसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। जब तक आखिरी बॉल नहीं फेंक दी जाए, तब तक कोई रिजल्ट नहीं बता सकता। है न रोमांचक। हर बॉल पर नई पैंतरेबाजी, हर शॉट पर नई रणनीति, प्रतिद्वंद्वी छोड़ो, खुद अपनी ही टीम के लोग असंतुष्ट और उलझे हुए। चाहे कितने भी बदलाव हुए हों, जयपुर और सूरत के कपड़ा उद्यमियों और व्यापारियों के हाथ तो अभी तक मायूसी ही आई है।
GST in India
सरकार पर अपनों के प्रहार-

बीजेपी नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने वर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली को गुजरात की जनता के लिए बोझ बताया है। इतना ही नहीं, उन्होंने यहां तक कह डाला कि जीएसटी और नोटबंदी में जैसी गड़बडिय़ां हुई हैं उस आधार पर देशवासियों की यह मांग उचित होगी कि जेटली वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी छोड़ दें। उनका कहना है वित्त मंत्री केवल एक व्यवस्था में भरोसा करते हैं कि चित भी मेरी और पट्ट भी मेरी। और तो और, यशवंत सिन्हा प्रधानमंत्री से मांग भी करते हैं कि वे जेटली को तुरंत वित्त मंत्री पद से बरखास्त करें। तो, बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी मोदी सरकार को ढाई लोगों की सरकार करार दे डाला। इसके अलावा शत्रुघ्न सिन्हा भी मोदी और जेटली पर कई बार कड़े कटाक्ष कर चुके हैं।
गुजरात चुनाव की मजबूरी-

जीएसटी में बदलाव नहीं करने और लिए गए फैसलों को अंतिम बताने वाली सरकार को चुनावी मजबूरी के कारण झुकना पड़ा। दस्तक जो हुई गुजरात चुनाव की तो 211 वस्तुओं पर जीएसटी स्लैब घटाया। अब सबसे बड़े 28 फीसदी के स्लैब में करीब पांच दर्जन वस्तुएं रही हैं। लगता है, ये भी 2018 के कुछ राज्यों के चुनाव या फिर 2019 के आमचुनाव के लिए छोड़ दी गई है, वर्ना सरकार तो यू-टर्न जमकर ले रही है।
GST in India
जयपुर और सूरत के कपड़ा व्यापारी मायूस-

हालांकि जीएसटी काउंसिल की सिफारिश के नाम पर जीएसटी में दर्जनभर बार बदलाव हुए, लेकिन सूरत और जयपुर या ऐसे ही अन्य स्थानों के व्यापारियों और उद्यमियों की समस्या थी, वह जस की तस है। कपड़े पर अब तक कोई कर नहीं था, जीएसटी थोप दी गई। उधर, सूरत के कपड़ा उद्योग की स्थिति तो और भी विकट है। उनको जहां धागे पर जीएसटी देनी पड़ रही है, वहीं तैयार कपड़े पर भी। इससे उद्योग की कमर ही टूट गई है, रही सही कसर सरकार की आयात नीति ने पूरी कर दी।
चीन से भारी मात्रा में कपड़ा आयात हो रहा है। उसकी कीमतों का मुकाबला सूरत का कपड़ा उद्योग नहीं कर पा रहा है, खासकर जीएसटी लगने के बाद। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि गुजरात में मतदान से पहले कपड़े और धागे की जीएसटी पर सरकार कुछ बदलाव कर सकती है। वैसे, भी क्रिकेट बन गया है, क्या पता कब क्या बदलाव हो जाए।
बहरहाल, दोनों निर्णय चाहे अच्छे माने सरकार, लेकिन बार-बार बदलाव ने सरकार की कमजोरी, अर्थशास्त्र की कम समझ और जिद उजागर हो गई। तभी तो विपक्ष तो विपक्ष, अपने भी सरकार पर प्रहार करने से नहीं चूक रहे।

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