15 दिन में बिके 300 मटके गर्मी के शुरूआती दिनों में मटकों की बिक्री 20 प्रतिशत थी, लेकिन अप्रैल व मई माह में बढ़ते गर्मी के प्रकोप ने एक बार फिर से मटकों की बिक्री में तेजी आई है। दुकानदारों के मुताबिक 15 दिन में 300 से अधिक मटकें बिके थे। जबकि प्रतिदिन 30 से 40 मटकों की बिक्री का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन एक बार फिर मटकों की बिक्री में एकदम से कमी आई है। हल्दी घाटी में एक दुकानदार ने बताया कि रोजाना जहां 10 से 15 मटके बिक रहे थे, वहीं अब बिक्री में काफी गिरावट आई है। प्रतिदिन 300 रुपए की बिक्री हो जाती है।
कम होती है बिक्री प्रताप नगर क्षेत्र का पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा होने के कारण यहां लोग कैम्पर का पानी ज्यादा मंगवाते है। यही कारण है कि मटके की बिक्री इस क्षेत्र में दिनों दिन कम होती जा रही है।
10 सालों से मटका बेचते आ रहे दुकानदार ने बताया कि पानी मटके में पानी ठंडा रहने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है उसकी मिट्टी। ग्राहकों को गुजराती व आमेर में तैयार हो रहेे मटके खासा लुभा रहे हैं। गुजरात की जमीन की लाल मिट्टी व आमेर की काली मिट्टी से पानी शीतल व ठंडा रहता है। इनकी सबसे खास बात ये है कि लकड़ी के बुरादे से लगने वाली आंच से मटका अंदर काला पड़ जाता है। यही कारण है कि इनमें पानी ठंडा रहता है। वहीं
जयपुर की काली व पीली मिट्टी से तैयार मटके पानी को गुजराती व आमेर मटकों से कम ठंडा रखते हैं।
राहगीरों को पिलाने के सबसे ज्यादा प्रयोग सार्वजनिक जगहों पर बने प्याऊ पर जयपुर में तैयार किए जा रहे हैं। इसमें पीली व लाल मिट्टी के मटके उपयोग में लिए जाते है। इन्हीं से सड़क चलते राहगीरों को ठंडा पानी मिल पाता है। क्षेत्र में अधिकतर पीआऊ पर जयपुर ग्रामीण में तैयार किए जा रहे मटके उपयोग मेें आ रहे है।
मटकों की बिक्री में कोई फर्क नहीं पड़ा नाथुलाल प्रजापत, मटका विक्रेता ने कहा कि फ्लोराइड की मात्रा अधिक जरूर है, लेकिन कैम्पर की जगह अगर लोग मटके का पानी पीए तो ये सेहत के लिए अधिक फायदेमंद रहेगा। मटका पानी से फ्लोराइड को अलग कर देता है। इस बार इसकी बिक्री में बढ़ोत्तरी हुई है।