दोनों के बीच बनी तनाव की स्थिति एकबारगी तो महापौर और सीईओ के बीच तनाव वाली स्थिति भी बनती नजर आई। सीईओ ने किसी भी तरह के गलत भुगतान के आरोप से इनकार किया है। उनका कहना है कि सभी काम पारदर्शिता के तहत किए जा रहे हैं। इस दौरान स्वायत्त शासन विभाग के प्रमुख शासन सचिव मनजीत सिंह भी मौजूद थे। बैठक में अब तक किए गए और संचालित कार्यों की प्रगति रिपोर्ट पेश की गई।
महापौर का ज्यादा भुगतान का यूं दावा – 41 करोड़ रुपए का व्यय किया गया स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत। – 34 करोड़ जेवीवीएनएल को अंडरग्राउंड केबलिंग के लिए हस्तांरित कर दिए करोड बाजारों में फसाड़ कार्य पर
– 34 करोड रुपए सौलर पर खर्च – इन कार्यों में कंसलटेंट फर्म की तकनीकी सेवाओं की जरूरत ही नहीं होने का दावा। यानि, 38.4 करोड़ रुपए के कार्य में कंसलटेंट फर्म की भूमिका ही नहीं।
– 02 रुपए का काम बचा है, जिसमें कंसलटेंट की भूमिका रही। इसी के तहत 8 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया गया। कंपनी का यह तर्क… – कंसलटेंट कंपनी का काम सभी प्रोजेक्ट की डिजाइनिंग, निविदा दस्तावेज तैयार करने से लेकर सुपरविजन करने तक का काम है।
– मौके पर काम शुरू नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि कंपनी ने निर्धारित कार्य शुरू नहीं किया है। उससे कई प्रोजेक्ट पर निर्धारित काम करवाया गया है। – जिन कार्यों का भुगतान किया गया, उसके अलावा भी कई बड़े प्रोजेक्ट की डिजाइन व निविदा दस्तावेज तैयार किए गए हैं। इनमें 30 करोड़ रुपए लागत का तालकटोरा सौन्दर्यन, 147 करोड़ रुपए की स्मार्ट रोड, 46 करोड़ रुपए के स्मार्ट रोड की आईसीटी, 40 करोड़ रुपए की अंडरग्राउंड पार्किंग, बायसाइकिल, ई—टॉयलेट, स्मार्ट क्लास सहित अन्य प्रोजेक्ट शामिल हङ्क्ष, जिनका काम शुरू हो गया है। इनकी डिजाइन, निविदा दस्तावेज भी फर्म ने ही तैयार किए हैं। भुगतान में इनकी राशि भी शामिल है।
आगे क्या अपने अरोपों को सिद्ध करने के लिए महापौर ने खुद ही एक प्रोफार्मा सौंपा है, जिसमें कंसलटेंट फर्म के नाम से लेकर कार्य, भुगतान तक की जानकारी मांगी गई है। यह जानकारी आगामी बोर्ड बैठक तक मांगी गई है।