जयपुर। आषाढ शुक्ल एकादशी (Devshayani Ekadashi) पर मंगलवार को रवि योग और राजयोग में देवशयनी एकादशी मनाई गई। इसके साथ ही चातुर्मास भी शुरू हो गए। देव शयन के साथ ही अब 119 दिन के लिए मांगलिक कार्यों पर विराम लग गया। एकादशी पर गोविंददेवजी मंदिर दर्शनार्थियों के लिए बंद रहा। वहीं घर—घर और मंदिरों में देव शयन कराए गए। इससे पहले दिन में मंदिरों में विशेष झांकी सजाई गई। अबूझ सावा होने से आज कई जोड़े शादी के बंधन में बंधे। अब 14 नवम्बर को देवउठनी एकादशी पर देव उठेंगे और मांगलिक कार्य शुरू हो पाएंगे।
शहर के आराध्य गोविंददेवजी दर्शनार्थियों के लिए बंद रहा। मंदिर में एकादशी की विशेष झांकी सजाई गई। ग्वाल झांकी के बाद सालिगरामजी को रथ में विराजमान कर तुलसा मंच तक लाया गया। यहां सालिगरामजी और तुलसाजी का पूजन किया गया। भोग आरती के बाद तुलसाजी के परिक्रमा कराई गई। इसके बाद सालिगरामजी को खाट में विराजमान कर निज मंदिर लाया गया। मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी ने बताया कि भक्तों ने आॅनलाइन ही ठाकुरजी के दर्शन किए।
पानों का दरीबा स्थित आचार्य पीठ सरस निकुंज में ठाकुरजी श्रीराधा सरस बिहारी जू सरकार की पुष्प झांकी के साथ देवशयन एकादशी महोत्सव मनाया गया। इस मौके पर शुक सम्प्रदायाचार्य अलबेली माधुरी शरण के सान्निध्य में ‘रंगीले रंग विलासो रंग भरी रेन पौढे रंग महल प्रिय-गौरी…, सुमन सेज पौढे मिल प्यारे…, जैसे समाज व शयन कुंज के पदों का गायन किया गया। झिनी रोशनी में पुष्प आरती करके ठाकुरजी को शयन कराया गया। रामगंज बाजार स्थित मंदिरश्री लाड़लीजी में केसर पिस्तायुक्त मक्खन और आमरस का भोग लगाया गया। वहीं पुरानी बस्ती स्थित मंदिरश्री राधा गोपीनाथजी, चांदनी चौक स्थित मंदिरश्री आनंदकृष्ण बिहारीजी व चौड़ा रास्ता स्थित मंदिर भी राधादामोदरजी में भी देवशयनी एकादशी पर विशेष आयोजन हुए।