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Gastroparesis : लक्षणों को न करें नजरअंदाज

locationजयपुरPublished: Aug 05, 2019 03:58:37 pm

Submitted by:

Divya Sharma

गेस्ट्रोपेरेसिस में पेट स्वत: खाली नहीं होता और 4 के बजाय कई बार 12 घंटे या इससे ज्यादा समय भी लग जाता है भोजन को पचने में…लक्षणों की जांच कराकर लें पूरा इलाज

Gastroparesis : लक्षणों को न करें नजरअंदाज

Gastroparesis : लक्षणों को न करें नजरअंदाज

आमतौर पर भोजन करने के बाद हमारे पेट की मजबूत मांसपेशियां संकुचित होकर भोजन को आंतों में आगे बढ़ाने और हमारे पेट को खाली करने का काम करती हैं। ऐसे में भोजन लगभग चार घंटे के बाद आंतों में पहुंच जाता है। क्या आप जानते हैं कि ज्यादातर समय यदि आपको पेट भरा-भरा लगे तो यह भी एक प्रकार की बीमारी है। ऐसी स्थिति जिसमें पेट स्वत: खाली न हो पाए तो उसे गेस्ट्रोपेरेसिस कहते हैं। ऐसे में खाने को पचने में 12-24 घंटे या उससे भी अधिक समय भी लग जाता है जिससे कई तरह के लक्षण महसूस होते हैं।
ये लक्षण होते हैं महसूस…
पेट भरा और फूला महसूस होने के अलावा उल्टी होना व मितली, पेट में दर्द, भूख न लगना, ब्लड शुगर लेवल के स्तर में उतार-चढ़ाव, वजन कम होना और पोषक तत्वों की कमी से शारीरिक कमजोरी का अहसास।
कमजोर पेट की नसें…
गेस्ट्रोपेरेसिस के लक्षण कई बार किसी प्रकार की गांठ या अल्सर की वजह से भी सामने आते हैं। असल में गेस्ट्रोपेरेसिस यानी पेट की नसों की कमजोरी या इन्हें लकवा मारना भी कह सकते हैं। खासकर पेट की लाइनिंग पर मौजूद वेगस नसों का कमजोर होना प्रमुख कारण होता है। इससे पेट के कार्यों की गति धीमी हो जाती है। इससे खाने का मूवमेंट ठीक से नहीं हो पाता है। इसलिए पेट खाली नहीं हो पाता। अधिक उम्र के व्यक्तियों में इस बीमारी के मामले काफी ज्यादा सामने आते हैं।
कई कारण बनाते हैं बीमार
लंबे समय से डायबिटिज की बीमारी में नसों का कमजोर होना स्वाभाविक है। ऐसे में यह रोग का मुख्य कारण है। इसके अलावा अधिक उम्र में शरीर की नसों का कमजोर होना अहम है। साथ ही अधिक वजनी, हाइपोथायरॉइड, पैदाइशी या जेनेटिक कारण और या फिर विटामिन-बी१२ की कमी अहम वजह हैं। कई मामलों में जब रोगी की पेट या आंतों संबंधी किसी प्रकार की सर्जरी में नसों को काटना पड़ता है उसमें भी सर्जरी के बाद गेस्ट्रोपेरेसिस के लक्षण सामने आते हैं।
ये जांचें हैं जरूरी
वैसे तो पेट की एंडोस्कोपी करने के अलावा नर्व स्टडी से भी समस्या का पता चल जाता है। इसके अलावा रोग के अहम कारण को जानने के लिए रक्त संबंधी व कुछ न्यूट्रिएंट टेस्ट भी करते हैं। बेरियम एक्सरे और अल्ट्रासाउंड भी कुछ मामलों में की जाती है।
हल्का व्यायाम करें
इस समस्या के मरीज को भोजन करने के बाद पेट की मांसपेशियों को सक्रिय करने के लिए हल्की फुल्की एक्सरसाइज या फिर वॉक करनी चाहिए। वॉर्म अप के दौरान किए जाने वाले वर्कआउट भी मददगार साबित हो सकते हैं। डॉक्टरी सलाह पर ही इन्हें अपनाएं।
इलाज व बचाव
रोग की यदि शुरुआती स्टेज है तो मरीज को खानपान और जीवनशैली में बदलाव के लिए कहते हैं। जैसे थोड़ा-थोड़ा बार-बार और धीरे-धीरे खाएं। ज्यादा तला-भुना और फाइबर से युक्त भोजन न लें। तरल और गरिष्ठ भोजन की मात्रा एक समान होनी चाहिए। मध्यम स्टेज में प्रोकाइनेटिक दवाओं से नसों को उत्तेजित किया जाता है। वहीं एडवांस्ड स्तर पर कई मामलों में गेस्ट्रो स्टीमुलेटर्स की मदद से नसों की गति बढ़ाई जाती है। इनसे उल्टी और मितली की समस्या में आराम मिलता है।
बढ़ती हैं समस्याएं
* भोजन को पचने में जब समय लगता है तो यह पेट में लंबे समय तक पड़ा रहता है। इस कारण से बार-बार होने वाली उल्टी फेफड़ों में चली जाती है जिससे निमोनिया की आशंका बढ़ जाती है। साथ ही बैक्टीरियल संक्रमण की शिकायत भी हो सकती है।
* जो कुछ चीज हम खाते हैं उसमें से पोषक तत्त्वों का विभाजन आंतों में जाने के बाद होता है। लेकिन जब पेट से आगे यह भोजन आंतों तक नहीं जा पाता तो पोषक तत्व शरीर को नहीं मिल पाते। इस कारण मुख्य रूप से एनीमिया और पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है।
* बार-बार होने वाली उल्टी शरीर में पानी की कमी का कारण बन सकती है। इसके अलावा भोजन का सही पाचन न होना ब्लड शुगर के स्तर में भी बदलाव कर सकता है।
एक्सपर्ट : डॉ. सुबोध वार्शने, गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, भोपाल
एक्सपर्ट : डॉ. सुधीर महर्षि, गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, एसएमएस अस्पताल, जयपुर

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