इन्सुलिन थेरपी लेने वाले मरीज़ों में डायबिटीज़ पर ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण बनाए रखने के लिए इंजेक्शन तकनीक महत्वपूर्ण होती है। शरीर में मांसपेशी को बचाने के लिए इन्सुलिन को त्वचा के नीचे मोटी परत पर इंजेक्ट किए जाने की जरुरत होती है। इसके साथ ही प्रत्येक इंजेक्शन के लिए हर समय नई जगह का उपयोग करना महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ ही ये सलाह दी जाती है कि एक ही जगह पर बार बार इंजेक्ट न करें और ये सलाह दी जाती है कि हर इस्तेमाल इंजेक्शन के समय सुई को बदला जाए।
डॉ.एस.के.शर्मा ने बताया कि इन्सुलिन पेन और सीरिंज की सुईयों का इस्तेमाल एक बार ही किए जाने के लिए होता है लेकिन ये पाया गया है कि डायबिटीज से पीडि़त 70 प्रतिशत लोग सुईयों का फिर से इस्तेमाल करते हैं जिसका प्रमुख कारण है जागरुकता और योग्य तरीके से इंजेक्शन लेने के तरीकों के प्रशिक्षण की कमी। सुईयों के बार-बार इस्तेमाल से सुई की नोंक बंद हो जाती है और मुड़ जाती है, जिससे दर्द और खून निकलना बढ़ता है, खुराक की मात्रा सही नहीं होती और लिपोहायपरट्रोफी की समस्या होती है। लिपो मरीज के आमतौर पर इंजेक्शन वाली जगहों पर त्वचा के अंदर एक मोटी रबर की तरह सूजन होती है। अध्ययन में पाया है कि बार-बार एक ही सुई के इस्तेमाल से लिपो होने का खतरा बढ़ जाता है।
इंजेक्शन पूरा हो जाने के बाद सुई पर बैक्टीरिया मौजूद होता है और इसके बार-बार इस्तेमाल से बैक्टीरिया का विकास बढ़ जाता है। काट्र्रिज में इसका प्रत्यावहन स्थूल रुप से देखा जा सकता है। यदि देखभाल करनेवाले को इस सुई से कोई जख्म हो जाए तो इससे खून से संचारित होने वाले रोगों जैसे एचआईवी या हेपेटाइटिस का खतरा हो सकता है। स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराने वाले पेशेवरों द्वारा मरीज़ों में सुई के बार.बार इस्तेमाल से होने वाले विपरीत परिणामों के बारे में जागरुकता फैलाई जानी चाहिए और ऐसे तरीकों पर रोक लगाना चाहिए।
मरीज़ों के लिए उपचार के परिणामों का पता लगाने के लिए दवाईयों का लिया जाना प्रमुख कारक होता है। डायबिटीज जैसे लंबे समय तक चलने वाले प्रबंधनीय रोगों के प्रबंधन के मामले में भारत में ये खास तौर पर सच है। सुईयों के बार-बार इस्तेमाल और इंजेक्शन लेने के गलत तरीकों से गंभीर लेकिन फिर भी टाले जा सकने वाले परिणाम और समस्याएं और दवाईयों की त्रुटियां हो सकती है। इसलिए मरीजों की सुरक्षा के लिए, इन्सुलिन की सुईयों के दोबारा इस्तेमाल किए जाने से बचने के बारे में जागरुकता फैलाने की अत्यधिक आवश्यकता है।