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कभी सोचा है की भीड़भाड़ वाली जगह या कांफ्रेंस हाल में क्यों महसूस होती है थकान

locationजयपुरPublished: Jun 25, 2019 02:24:46 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

भीड़ भरे कॉन्फ्रेंस हॉल में 60 मिनट की मीटिंग में अक्सर बहुत कोशिशों के बाद भी हम ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते। थकावट और सिरदर्द के मारे आप कुछ देर झपकी लेना चाहते हैं लेकिन बॉस के सामने ऐसा करने की हिम्मत नहीं। जैसे ही मीटिंग खत्म होती है आप तुरंत सबकुछ भूलकर बाहर निकलते हैं और ताजी हवा में सांस लेते ही आप पहले जैसे सामान्य अनुभव करने लगते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?

stress

kyun hota hai stress meetings aur bheed mein

अक्सर कंपनी की कॉन्फे्रंस, जनरल मीटिंग्स और मार्केटिंग बैठकों में लोगों को थकान, सिरदर्द और सांस लेने में परेशानी की समस्या से परेशान होते देखा गया हे। ज्यादातर लोग जहां इसे मीटिंंग का प्रेशर और काम का दबाव मानकर हल्के में लेते हैं वहीं वैज्ञानिकों के लिए यह शोध का विषय है। भीड़ भरे कॉन्फ्रेंस हॉल में 60 मिनट की मीटिंग में अक्सर बहुत कोशिशों के बाद भी हम ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते। थकावट और सिरदर्द के मारे आप कुछ देर झपकी लेना चाहते हैं लेकिन बॉस के सामने ऐसा करने की हिम्मत नहीं। जैसे ही मीटिंग खत्म होती है आप तुरंत सबकुछ भूलकर बाहर निकलते हैं और ताजी हवा में सांस लेते ही आप पहले जैसे सामान्य अनुभव करने लगते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?

खगोलविद ने बताया कारण
थकान, कमजोरी और सुस्ती का यह एहसास काल्पनिक या भ्रम नहीं है। हाल ही इस पर कुछ रोचक निष्कर्ष सामने आए हैं। बीते सप्ताह फिनलैंड के हेलसिंकी स्थित राष्ट्रीय ज्योतिष खगोल वेधशाला के एक खगोलशास्त्री एडम गिन्सबर्ग ने सुबह के सत्र में आयोजित अकादमिक सम्मेलन में कुछ ऐसा अनुभव किया जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता। उन्होंने सत्र में एक कार्बन डाइऑक्साइड मॉनीटर का उपयोग किया था। सत्र में उस समय 100 से भी ज्यादा छात्र और स्टाफ के सदस्य उपस्थित थे। इस विशेष मॉनिटर का आउटपुट से पता चला कि कॉन्फे्रंस हॉल में एक साथ इतने सारे लोगों के मौजूद होने पर हवा की गुणवत्ता किस हद तक प्रभावित होती है। दरअसल, एडम अपना सह पोर्टेबल कार्बनडाई ऑक्साइड मॉनिटर विशेष रूप से भीड़भाड़ वाली जगहों पर साथ लेकर चलते हैं।

दोगुना हो गया कार्बन का स्तर
एडम गिन्सबर्ग ने मॉनिटर पर प्रदर्शित डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने देखा कि खुले हवादार कॉन्फे्रंस हाल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 800 पीपीएम (पाट्र्स पर मिलियन) होता है। लेकिन खुली हवादार जगह न होने पर हवा कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बहुत तेजी से बढ़ता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सामान्य हवा में मात्रा के हिसाब से लगभग 4 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद होती है। अमरीकन सोसाइटी ऑफ हीटिंग, रेफ्रिजरेशन और एयर-कंडिशनिंग इंजीनियर्स के अनुसार, हेलसिंकी के लेक्चर हॉल में भी मॉनिटर ने कार्बनडज्ञइऑक्साइड की सघनता दिखाई दी। सुबह नौ बजे शुरू हुई कॉन्फे्रंस के शुरुआती एक घंटे में ही कॉन्फे्रंस हॉल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 1000 पीपीएम तक पहुंच गया था। यह वह सीमा है जब कमरे में लोग ठूंसकर भरे हुए हों। जैसे-जैसे कॉन्फे्रंस का समय बढ़ता गया कार्बन का स्तर भी बढऩे लगा। जो 10 बजकर 20 मिनट तक 1700 पीपीएम तक पहुंच गया था। सामान्य कार्बन की मात्रा से लगभग दोगुना ज्यादा।

खिड़कियां खुली, घटा स्तर
जब कॉन्फे्रंस में 30 मिनट का ब्रेक लिया गया तो सभी कमरे से बाहर चले गए और खिड़कियों को खोल दिया गया। फिर दो नाटकीय परिवर्तन ददेखने को मिले। लोगों के बाहर जाने से कार्बन का उत्सर्जन कम हुआ और खिड़कियों के खेलने से ताजी हवा कमरे में आने से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर मिनटों में 1700 से घटकर 600 पीपीएम से भी नीचे आ गया। जब सत्र फिर से शुरू हुआ तो आयोजकों ने खिड़कियां खुली रखीं। लेकिन इस बार कॉन्फे्रंस हॉल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 1000 से 1200 पीपीएम के बीच ही बना रहा। गिन्सबर्ग का कहना है कि ऐसी परिस्थितियों में आमतौर पर बेचैनी, उनींदापन, थकान और कमजोरी महसूस होना स्वाभाविक है।

क्या होता है कार्बन का स्तर बढऩे से
दरअसल, कार्बन डाइऑक्साइड काफी हद तक हमें सुस्त बना सकती है। बर्कले लॉरेंस राष्ट्रीय प्रयोगशाला के एक शोध में सामने आया कि हमारे आसपास मौजूद हवा में अकिार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा अधिक (1000 पीपीएम) होने पर हमारे निर्णय लेने और चुनौतीपूर्ण कामों को करने की क्षमता प्रभावित होती है। वहीं हाल के दिनों में स्कूलों और कार्यालयों में वायु की गुणवत्ता पर हुए अन्य शोध से भी पता चला है कि यह स्तर नियमित सीमा से अधिक है।

61 साल में बढ़ गया स्तर
शोधकर्ताओं का कहना है कि 1958 से वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बीते ६१ सालों में लगभग 100 पीपीएम तक बढ़ गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले सालों में यह वृद्धि जारी रहने की संभावना है। वैज्ञानिक और दुनिया भर के पर्यावरण संगठन का दावा है कि वर्ष 2100 तक यह वृद्धि 1000 पीपीएम तक पहुंचने की उम्मीद है। अगर ऐसा होता है तो यह हमारे घरों में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को बहुत अधिक बढ़ा देगा, जो मनुष्यों की सोचने और काम करने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करेगा।
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