भजनों की रमझट, सजी झांकियां पद यात्राओं के साथ चल रहे वाहनों में डीजे पर थारे बाजे नौबत बाजा म्हारा डिग्गी पुरी का राजा… सावन का महिना में डिग्गी को मेंळों भरे…, चालाला रे चालाला डिग्गी का मेळा मा…जैसे भजन बज रहे थे। महिलाएं-पुरूष क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग नृत्य कर अपने को निहाल कर रहे थे। कल्याणधणी के प्रति श्रद्धा के आगे बुढ़ापा व बचपन भी हार गया। लोग नृत्य करते थक नहीं रहे थे। वाहनों में कल्याणधणी की सजी हुई झांकियां चल रही थी। वही चौड़े रास्ते में बाबा भोलेनाथ की सजीव व बर्फानी झांकी सजाई गई।
इस तरह हुई शुरूआत श्री डिग्गीपुरी कल्याण लक्खी पदयात्रा समिति के संयोजक व संचालक श्रीजी शर्मा बताते हैं उनके दादा रामेश्वर लोहेवाले के 14 साल तक कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने अपनी बहन के बेटे प्रहलाद शर्मा को गोद ले लिया। लेकिन प्रहलाद शर्मा के भी शादी के सात साल बाद तक कोई संतान नहीं हुई तो रामेश्वर लोहेवाला चिंतित रहने लगे। इसी दौरान एक महात्मा उनकी दुकान पर आए और उन्हें चिंता देख उन्हें डिग्गी कल्याणजी के पैदल परिक्रमा ले जाने की सलाह दी। इस पर उन्होंने 1964 में सावन शुक्ला छठ को चौड़ा रास्ता के ताडकेश्वर महादेव मंदिर से पैदल परिक्रमा शुरू की। परिक्रमा शुरू करने के आठ साल बाद संतान हुई, जिसका नाम श्रीजी रखा गया। शुरूआती दौर में दस प्रन्द्रह लोगों से शुरू की गई यात्रा में आज लाखों श्रद्धालु डिग्गी कल्याण के दर पर धोक लगाने जाते है। इस परंपरा का निर्वहन करते हुए उनके पोते श्रीजी शर्मा 54वीं लक्खी पदयात्रा का झंडा उठा रहे हैं।