गौर करने वाली बात यह है कि मोबाइल उपभोक्ता भले ही इंटरनेट उपयोग नहीं कर पा रहा है, लेकिन मोबाइल ऑपरेटर इसका शुल्क (रिचार्ज के रूप में) पहले ही ले चुके हैं। प्रदेश में 6.28 करोड़ में से ज्यादातार उपभोक्ताओं को यह नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके बावजूद सरकार अब तक भी सम्पूर्ण इंटरनेट प्रतिबंधित करने की बजाय संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफार्म के संचालन पर रोक का मैकेनिज्म तैयार नहीं कर पाई। राजस्थान में लोग अब इसे ’डिजिटल इमरजेंसी’ बता रहे हैं।
तो अधिकार सस्पेंड… दैनिक उपयोग से जुड़े छोटे से छोटा काम अब इंटरनेट पर निर्भर है। हर दुकानदार, थड़ी-ठेले वाले भी डिजिटल भुगतान प्लेटफार्म उपयोग कर रहा है। बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा से लेकर कैब सर्विस बुरी तरह प्रभावित है। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार इंटरनेटबंदी लोगों के अधिकार सस्पेंड करने जैसा है। 30 से ज्यादा सेवाएं चार दिन से बंद हैं। करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट भी बता चुका- मौलिक अधिकार…
सुप्रीम कोर्ट एक मामले में जनवरी, 2020 में कह चुका है कि इंटरनेट संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है। इसलिए इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता। राजस्थान में अब इंटरनेटबंदी सामान्य होती जा रही है।
नेटबंदी होने से हम अपनी परीक्षा से संबंधित नोट्स तक नहीं निकलवा पा रहे हैं। अधिकांश एग्जाम का मैटर नेट के जरिए ही मोबाइल पर आता है पर अब सब रुका पड़ा है।
पुरुजीत आसोपा, छात्र
नेटबंदी के कारण मैं कॉलेज का असाइनमेंट पूरा नहीं कर पा रही हूं । कॉलेज आने-जाने के लिए कैब का उपयोग करती आई हूं, लेकिन राइड बुक ही नहीं कर पा रही हूं। इस कारण पिछले दो दिनों से कॉलेज नहीं जा पाई।
शाहिदा, छात्रा
बच्चे की परीक्षा का प्रवेश पत्र डाउनलोड नहीं कर पा रहे है। मजबूरन, शिक्षण संस्थान जाना पड़ा। दैनिक उपभोग के लिए घरेलू सामान के लिए भी बैंक से पैसा निकलवाना पड़ा है।
मुकेश जैन, बरकत नगर