जस्टिस भंडारी ने कहा कि जज होने के नाते हम दोनों पक्षों को सुनते हैं। लेकिन अकसर देखा जाता है कि महिला समाज अधिक शोषित और प्रतड़ित होता है। इसका मुख्य कारण बाल विवाह और दहेज प्रताड़ना है। उन्होंने बताया कि गर्भपात के मामले में एक बोर्ड का गठन किया जाता है और उसी के द्वारा निर्णय होता है। जब तक महिला अकेली होती है, तब तक उसके अधिकार स्वयं से जुड़े होते हैं। लेकिन विवाह के बाद अन्य लोग भी जुड़ जाते हैं। गर्भधारण करने में पुरुष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, वो भी प्रभावित पक्षकार होता है। इसलिए उसके भी अधिकार होते हैं।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में मंच चर्चा हुई, जिसमें पूर्व राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लाड कुमारी जैन, एडवोकेट प्रतीक कासलीवाल, विध विभागाध्यक्ष जीएस राजपुरोहीत, डॉ. लीला व्यास, डॉ. नीरजा व्यास, निदेशक पंच वर्षीय विधि महाविद्याल डॉ. संजुला थानवी। इस दौरान शोध विद्यार्थियों ने सेरोगेसी, महिला स्वास्थ्य, सुरक्षा, आत्मसम्मान, महिलाओं के प्रजनन अधिकार पर प्रश्न पूछे। इस दौरान डॉ. लीलाव्यास ने प्रजनन में महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और उपायों के बारे में चर्चा की। वहीं डॉ. संजीदा थानवी ने बेटी पढ़ओ, बेटी बचाओ और बेटा समझाओ का नारा दिया। उन्होंने कहा कि महिलाओं का शोषण रोकने और उनके अधिकार देने के लिए समाज को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है।