मौसम बदलने से काले सोने में लगा रोग
जयपुरPublished: Mar 16, 2020 10:21:09 am
अफीम फसल में होता है सफेद मस्सी,काली मस्सी और खाखरिया रोग,इन दिनों हुआ काली मस्सी
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जयपुर
प्रदेश में मौसम के पलटा खाने के कारण अफीम की फसल में रोग लगने लगा है। वहीं पहले ही अफीम की फसल हवा व बारिश के कारण भी काफी प्रभावित हो चुकी है। जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई हैं। पहले ही बारिश और ओलो के कारण आड़ी पड़ी फसल के डोडों में चीरा लगाने में काफी परेशानी आ रही है तो अब तापमान गिरने से और नमी से फसल में रोग लगने लगा है। किसानों का कहना है कि तापमान में गिरावट तो अफीम की फसल के लिए सही है लेकिन बारिश के कारण आई नमी से फसलों में रोग लगने लगा है। इन दिनों किसान अफीम की फसल में काली मस्सी रोग से परेशान हैं।
अफीम में तीन तरह का होता है रोग
काला सोना कही जाने वाली अफीम की फसल में तीन तरह का रोग पनपता है। अफीम की फसल में काली और सफेद मस्सी के साथ खाखरिया रोग हो रहा है। जिस कारण से अफीम की फसल के पौधे सूख जाते हैं। डोडों को भी सूखने के कारण उनमें दूध नहीं निकल पाता है। जिससे किसान को नुकसान होता है। इन दिनों खेतों में डोडों में चीरा लगाकर दूध निकालने की प्रक्रिया चल रही है। खड़ी फसल में तो चीरा लगाना आसान होता है लेकिन आडी फसल में चीरा लगाकर दूध निकालना किसानों के लिए परेशानी बना हुआ है। वहीं फसल को रोग का खतरा सता रहा है। कृषि विशेषज्ञ डॉ.सीबी यादव ने बताया कि काली मस्सी के प्रभाव से अफीम का डोडा काला पड़ जाता है। समय के साथ यह डोडा सूखने लगता है। वहीं सफेद मस्सी का रोग लगने से अफीम का पौधा जड़ से लेकर डोडे तक पूरी तरह सूख जाता है। डोडों के सूखने से अफीम का उत्पादन नाममात्र का भी नहीं होता है। तो खाखरिया रोग आने से पूरा पौधा सूख जाता है। देखभाल और उपचार के बाद भी अफीम के पौधे की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता है। फिलहाल किसान काली मस्सी रोग से जुझ रहा है जिस कारण से उसका उत्पादन कम होता हैं।
उत्पादन कम होना भी किसान के सामने समस्या
उत्पादन कम होने पर भी किसानों के सामने समस्या पैदा हो जाती है। अफीम की तस्करी काफी होती है। ऐसे में नारकोटिक्स विभाग की ओर से पट्टे मिलने पर ही अफीम की खेती की जा सकती है। खेत में जगह के हिसाब से अफीम का तौल भी तय होता है और नारकोटिक्स विभाग ही खेतों में अफीम का तौल कर किसानों का इसका दाम देता है। इस खेत में खेती के लिए जगह और उससे होने वाला उत्पादन की मात्रा तय रहती है। अगर किसान कम उत्पादन करता है तो विभाग को शक होता है कहीं किसान ने चोरी छिपे तो अफीम तस्करों को नहीं बेच दिया है। ऐसे में किसान को खुद को सही साबित करने की परेशानी भी उसके सामने होती है। वहीं रोग से डोडों से पूरा दूध नहीं निकल पाता हैं। जिससे अफीम की मात्रा कम बनती है।