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विरोध को राष्ट्र विरोधी करार देना संविधान पर चोट: जस्टिस चंद्रचूड़

locationजयपुरPublished: Feb 16, 2020 01:20:38 am

Submitted by:

Vijayendra

व्याख्यान : सुप्रीम कोर्ट के जज बोले असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व

विरोध को राष्ट्र विरोधी करार देना संविधान पर चोट: जस्टिस चंद्रचूड़

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अहमदाबाद. विरोध और असहमति को लोकतंत्र के सेफ्टी वॉल्व की संज्ञा देते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति या विरोध को पूरी तरह राष्ट्र विरोधी या अलोकतांत्रिक करार देना संवैधानिक मूल्यों पर चोट के समान है।
गुजरात हाईकोर्ट सभागार में शनिवार को जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल व्याख्यान में ‘विविध रंग, वर्ण जो भारत को बनाते हैं बहुलता से बहुलवाद’ विषय पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कानून के दायरे में भारत जैसे उदार लोकतंत्र में नागरिकों को अपने विचारों को रखने का पूरा अधिकार है। वर्तमान कानूनों के खिलाफ विरोध करने का भी पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि विचारों को दबाने के लिए राज्य की मशीनरी का दुरुपयोग कानून विरोधी है। राज्य की ओर से विरोध को दबाने के लिए मशीनरी का उपयोग करना डर पैदा करना होता है। यह अभिव्यक्ति की आजादी के वातावरण को खत्म करने का काम करता है जिससे ‘कानून के शासन’ का उल्लंघन होता है। साथ ही यह संविधान के बहुलवाद समाज के दृष्टिकोण से विपरीत है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार विकास व सामाजिक संयोजन के उपकरण के समान है, लेकिन लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार बहुलवाद समाज के मूल्यों व पहचान पर एकाधिकार नहीं रख सकती। असहमति दर्शाना या सवाल खड़े करने का विरोध सभी तरह के विकास के आधार को नष्ट करता है चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक हो। इस तरह उन्होंने असहमति को लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वॉल्व की तरह बताया। जस्टिस चंद्रचूड़ का यह वक्तव्य ऐसे समय आया है जब देश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) तथा प्रस्तावित एनआरसी को लेकर देश भर में विरोध जारी है।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि राज्य को विचारों की स्वतंत्रता को दबाने की बजाय इन विचारों की रक्षा की जानी चाहिए। साथ ही विभिन्न विचारों का सम्मान किया जाना चाहिए। विविध विचारों को दबाने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए बल्कि रक्षा और बढ़ावा दिया जाना चाहिए। एक दूसरे का आदर करना और अलग-अलग विचारों का सम्मान किया जाना चाहिए।
विविधता से है देश की अवधारणा
इस देश की अवधारणा इसकी विविधताओं से है न कि इसे खत्म करने से है। राष्ट्रीय एकता हमारी सांस्कृतिक मूल्यों को परिभाषित करती है। यही संविधान का आधार है। संविधान मौलिक अधिकारों की गारंटी ही नहीं बल्कि इसका उपयोग करने की भी आजादी देता है। द्गजस्टिस चंद्रचूड़
‘भारत के विचार पर कोई नहीं कर सकता अपना दावा’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विरोध को दबाना और लोगों के दिमाग में भय पैदा करना व्यक्तिगत विचारों की आजादी और संवैधानिक मूल्यों से पूरी तरह उलट है। यह संवाद आधारित समाज पर एक चोट के है जो सभी लोगों को समान आदर प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि भारत का विचार सिर्फ एक धर्म, नस्ल, भाषा या विश्वास नहीं बल्कि विविध धर्मों, नस्लों, भाषाओं से बना है। कोई भी व्यक्ति या संस्थान भारत के विचार पर अपना दावा नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि संविधान के निर्माताओं ने हिन्दू भारत या मुस्लिम भारत के मत को खारिज किया। सिर्फ भारतीय गणतंत्र को ही स्वीकार किया। इन संविधान निर्माताओं ने नई पीढ़ी पर यह विश्वास रखा कि वे एक-दूसरे को बांधेंगे जो भारत को परिभाषित करता है।
विरोध करने वाले द्रेशद्रोही नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने गुरुवार को कहा था कि सीएए का शांतिपूर्ण विरोध करने वालों को इसलिए गद्दार और देशद्रोही नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे एक कानून का विरोध करना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा था देश को आजादी अहिंसक आंदोलनों से मिली है।?
यूपी में वसूली नोटिस पर लगाई जा चुकी है रोक
ज्ञात हो कि सीएए के विरोध में सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट किए जाने के आरोप में कानपुर के निवासी एक व्यक्ति के खिलाफ जारी वसूली नोटिस पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने शुक्रवार को रोक लगा दी है।
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