बताया जाता है कि कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी और डूंगरपुर जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस की ओर से बीटीपी का साथ नहीं देने से बीटीपी विधायकों और कार्यकर्ताओं में गहरी नाराजगी है, बताया जाता है इस घटनाक्रम के बाद बीटीपी खेमे में सरकार समर्थन वापस लेने पर मंथन चल रहा है।
बीटीपी से जुड़े नेताओं ने भी इसके संकेत दिए हैं। अगर बीटीपी सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर तो ये गहलोत सरकार के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा। हालांकि बीटीपी समर्थन वापस भी लेती है तो इससे सरकार पर कोई संकट नहीं आएगा। प्रदेश में बीटीपी के दो विधायक हैं। ऐसे में अगर दो विधायकों का समर्थन कम होता है तो गहलोत सरकार को 123 विधायकों की ही समर्थन रह जाएगा।
कांग्रेस विधायकों की बयानबाजी से नाराज हैं बीटीपी
सूत्रों की माने तो पंचायत-जिला परिषद चुनाव के दौरान बीटीपी विधायकों को लेकर कांग्रेस ने खूब बयानबाजी की थी। आदिवासी अंचल के दिग्गज कांग्रेसी नेता और विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का चुनाव प्रचार का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे लोगों को संबोधित करते हुए सरकार बचाने के एवज बीटीपी विधाय़कों पर पैसे लेने के आरोप लगा रहे थे।
इससे बीटीपी के साथ पार्टी के दोनों विधायकों ने भी गहरी नाराजगी जाहिर की थी। वहीं डूंगरपुर जिला परिषद चुनाव में माना जाता है कि कांग्रेस के समर्थन नहीं करने से बीटीपी नाराज है। पंचायत चुनावों में बीटीपी ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी।
मामले पर मुख्यमंत्री की भी नजर
बताया जाता है कि बीटीपी के समर्थन वापसी की अटकलों पर मुख्य़मंत्री अशोक गहलोत की भी नजर है। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री लगातार स्थानीय विधायकों से फीडबैक ले रहे हैं।
ये भी एक वजह
दरअसल आदिवासी अंचल में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता है कि बीटीपी के कांग्रेस वोट बैंक में सेंध लगाने से स्थानीय कांग्रेस विधायक इसे पचा नहीं पा रहे हैं। बीटीपी ने विधानसभा चुनाव में सागवाड़ा और डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था। माना जा रहा है कि बीटीपी की नजर बांसवाड़ा, बागीदौरा, खैरवाड़ा और डूंगरपुर जैसी आदिवासी बाहुल्य सीटों पर नजर है, ये सीटें फिलहाल कांग्रेस के पास है।