अयोध्या की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार मनता था त्योहार
उस दिन विद्वान आचार्य वैदिक मंत्रों से घास की रोटी का पवित्र कुशा के साथ पूजन करते। इसके बाद घास की रोटी को दरवाजे पर लटका दिया जाता। काले घोड़े पर सवार हो महाराजा दरवाजे पर लटकी रोटी के नीचे से निकलते। घोड़े की लगाम को खींचकर घोड़े की गर्दन को पीछे करते और अपने सिर को आगे करते हुए निकलते। देवर्षि कलानाथ शास्त्री के मुताबिक जयपुर राज्य में अयोध्या की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार त्योहार मनाने का रिवाज रहा है।
उस दिन विद्वान आचार्य वैदिक मंत्रों से घास की रोटी का पवित्र कुशा के साथ पूजन करते। इसके बाद घास की रोटी को दरवाजे पर लटका दिया जाता। काले घोड़े पर सवार हो महाराजा दरवाजे पर लटकी रोटी के नीचे से निकलते। घोड़े की लगाम को खींचकर घोड़े की गर्दन को पीछे करते और अपने सिर को आगे करते हुए निकलते। देवर्षि कलानाथ शास्त्री के मुताबिक जयपुर राज्य में अयोध्या की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार त्योहार मनाने का रिवाज रहा है।
निकलता था शाही जुलूस
राजा की शाही सवारी में कछवाहों के आराध्य देवता भगवान सीतारामजी का रथ सबसे आगे रखा जाता था। मंदिरों में गोवर्धन लीलाएं होती और अन्नकूट का प्रसाद बनता। दोपहर बाद जलेब चौक से शाही जुलूस निकलता। महाराजा हाथी पर सवार होते उससे पहले जलेब चौक में मौजूद सेना की परेड की सलामी लेते। रियासत की सैन्य टुकडिय़ों के अलावा आर्मी का बैंड आगे चलता। हाथियों, घोड़ों और बैलों के सजे हुए रथ चलते। बालानन्दजी पीठ के अलावा अखाड़ों के पहलवान करतब करते साथ चलते।
राजा की शाही सवारी में कछवाहों के आराध्य देवता भगवान सीतारामजी का रथ सबसे आगे रखा जाता था। मंदिरों में गोवर्धन लीलाएं होती और अन्नकूट का प्रसाद बनता। दोपहर बाद जलेब चौक से शाही जुलूस निकलता। महाराजा हाथी पर सवार होते उससे पहले जलेब चौक में मौजूद सेना की परेड की सलामी लेते। रियासत की सैन्य टुकडिय़ों के अलावा आर्मी का बैंड आगे चलता। हाथियों, घोड़ों और बैलों के सजे हुए रथ चलते। बालानन्दजी पीठ के अलावा अखाड़ों के पहलवान करतब करते साथ चलते।
धार्मिक पीठ के गुरु व महंत पालकियों में होते थे सवार
ऊंटों पर बंदूकें लिए सैनिकों का काफिला चलता। गलता तीर्थ, श्री गोविंददेवजी, गोपीनाथजी के अलावा बालानन्दजी मठ आदि धार्मिक पीठ के गुरु व महंत पालकियों में बैठे साथ चलते।
ऊंटों पर बंदूकें लिए सैनिकों का काफिला चलता। गलता तीर्थ, श्री गोविंददेवजी, गोपीनाथजी के अलावा बालानन्दजी मठ आदि धार्मिक पीठ के गुरु व महंत पालकियों में बैठे साथ चलते।
सुहागनें करती थी अखंड सौभाग्य की कामना
पुराने रिकार्ड के अनुसार अंग्रेज रेजीडेंट कर्नल क्रिस्टर आदि विशिष्ट मेहमानों ने चौड़ा रास्ता स्थित महाराजा पुस्तकालय की छत से जुलूस को देखा। चांदपोल दरवाजे पर सुहागनें अखंड सौभाग्य की कामना से यमराज को तेल, पूड़ी पापड़ी और लोहे की वस्तुएं चढ़ाती थीं।
पुराने रिकार्ड के अनुसार अंग्रेज रेजीडेंट कर्नल क्रिस्टर आदि विशिष्ट मेहमानों ने चौड़ा रास्ता स्थित महाराजा पुस्तकालय की छत से जुलूस को देखा। चांदपोल दरवाजे पर सुहागनें अखंड सौभाग्य की कामना से यमराज को तेल, पूड़ी पापड़ी और लोहे की वस्तुएं चढ़ाती थीं।