हर साल अक्टूबर-नवंबर में मनाया जाने वाला दिवाली का पर्व प्रदेश के अहम त्यौहारों में से एक और खासा लोकप्रिय माना जाता है। राजस्थान में दीपावली केवल प्रकाश उत्सव नहीं है, बल्कि यह यहां के लोगों के लिए परंपरा और संस्कृति को दर्शाने वाला अलौकिक रुप है, जिसे लोग बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते नजर आते हैं। लोग इस त्यौहार को लेकर एक महीने पहले से ही तैयारी शुरु कर देते हैं। जबकि यहां के बाजारों में इसकी असली तस्वीर देखने को मिलती है, जहां लोग अपनी अहम जरुरत की चीजों के लिए दिभर चहलकदमी करने के बावजूद भी थके नजर नहीं आते।
पौराणिक हिंदू धर्मग्रथों के अनुसार जब भगवनान श्रीराम अपनी 14 साल के वनवास को पूरा कर अयोध्या लौटे थे, तो पूरा-पूरा अयोध्या नगरी मिट्टी के दीपों और फूलों से सजा पड़ा था। और उनके वापसी के जश्न के तौर पर प्रकाश के जरिए उनका स्वागत किया गया था। जिसके बाद से हर साल इसी तिथि को दिवाली मानाने की परंपरा निभाई जाती है। इस दिन राजस्थान में सभी घरों में अनगिनत दीया, मोमबत्तियों और बिजली की रोशनी से जगमगाते घर काफी मनमोहक प्रतीत होते हैं। Diwali Celebration in Rajasthan जबकि रोशनी के साथ आतिशबाजी पूरे आसमान को एक अलग ही रुप देते दिखते हैं, जैसे आसमान के काले कैनवास पर किसी डिजाइन कोई डिजाइन बनाया गया हो।
तो वहीं दिवाली का त्यौहार यहां रहने वाले लोगों को अपने घरों को सजाने, नए कपड़े खरीदने, रिश्तेदारों और मित्रों से मिलने के अलावा अपनी दिनचर्या को किनारे कर उत्सव का आनंद लेने का मौका देता है। जबकि इस अवसर को ध्यान में रख खास तौर पर यहां के पकवान को बनाने का रिवाज है। महिलाएं इस खास दिन पर मवा कछोरी, तिल के लड्डू, गन्थ के लड्डू, पिस्ता के बने पकवान, मोती पाक, फेनी, सोहन पापड़ी, बेसन बर्फी, जलेबी, शाक पापाड़ा जैसी मिठाइयां तैयार करती हैं। जो खाने में काफी लजीज होते हैं। इसके साथ ही खास पूजा-पाठ के बाद लोग इस त्यौहार की खुशियां मनाने के साथ अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटते भी नजर आते हैं। जो यहां की खास परंपरा में शामिल है।