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दिवाली है कई धर्मों का त्योहार- कभी मुस्लिम बादशाहों ने भी इसे खूब आनंद से मनाया

locationजयपुरPublished: Oct 18, 2017 10:44:20 pm

दिवाली मनाने के कई कारणों में प्रमुख है श्रीराम के अयोध्या लौटने की कथा.. तो वहीं जैन, सिख और बौद्ध धर्म में भी है दीपावली मनाने की परंपरा।

Diwali in Rajasthan
-राजेंद्र शर्मा-

-दिवाली मनाने के कई कारणों में प्रमुख है श्रीराम के अयोध्या लौटने की कथा… जैन, सिख और बौद्ध धर्म में भी है दीपावली मनाने की परंपरा… मुस्लिम बादशाहों ने भी इस त्योहार को खूब आनंद से मनाया।
कोई भी पर्व या त्योहार हो, राजस्थान की राजधानी जयपुर में जो उल्लास और भव्यता दिखती है, वह शायद और कहीं नहीं दिख सकती। दीपावली पर तो जयपुर यानी छोटी काशी की जगमगाहट, उत्साह और सजावट मिसाल बन जाती है। दरअसल, गुलाबी नगरी में सभी धर्मों के लोग खूब हिलमिल के रहते हैं और दूसरों के त्योहार का भी पूरा लुत्फ लेते हैं। दिवाली भी सभी धर्मों के लोग पूरी उमंग और श्रद्धा से अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार मनाते हैं। वैसे, दिवाली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। यह पांच दिवसीय त्योहार धनतेरस से भाई दूज तक मनाया जाता है। दीपावली की तैयारी कई दिनों पहले से शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते है। घरो और अपनी दुकानों आदि की रंगाई-पुताई करते है। बाज़ारों की गलियों को सुनहरी झंडियों, फर्रियों आदि से सजाया जाता है। इस तरह दीपावली से पहले ही घर, मोहल्ले, बाजार आदि सब साफ सजे हुए दिखाई देते हैं। दीपावली कार्तिक अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष दीपावली 19 अक्टूबर को है।
भगवान श्रीराम के लिए

दीपावली किस कारण से मनाई जाती है, इस सबंध में कई पौराणिक कथाओं का जिक्र किया जाता है। इनमें पहला और सर्वाधिक मान्य कथा है, भगवान श्रीराम की। रामायण के अनुसार इस दिन दशरथ पुत्र भगवान श्रीराम ने अपने चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। अमावस्या के अंधियारे को अयोध्या में सजी दीपमालिकाओं ने समाप्त कर रोशनी का साम्राज्य फैला दिया था। पूरी अयोध्या नगरी घी के दीयों से जगमगा उठी थी। श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी वनवास के अंत में लंकेश रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराने से चौगुनी हो गई थी। तभी से यह त्योहार इसी उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
माता लक्ष्मी के लिए

भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की घटना की स्मृति में दीपावली मनाई जाती है, जबकि माता लक्ष्मी की इस रात्रि में हर हिंदू के घर में कुटुम्ब सहित लक्ष्मी पूजन किया जाता है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इस रात्रि में लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? इसका उत्तर भी एक पौराणिक कथा में है कि जब देवताओं और राक्षसों द्वारा क्षीर सागर का मंथन किया गया, उसी दौरान कार्तिक अमावस्या के दिन देवी लक्ष्मी क्षीर सागर से निकली थीं। तभी से धन की देवी माता लक्ष्मी के जन्मदिन की उपलक्ष्य में दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण के लिए

द्वापर युग में नरकासुर नामक राक्षस के अत्याचार से पृथ्वीवासी अत्यंत दुखी थे। वरदान प्राप्त नरकासुर अपनी शक्ति के अहंकार में चूर था। वह न केवल पृथ्वी के राजाओं पर, बल्कि देवताओं पर भी अत्याचार करता था। साथ ही, वह पराजित राजाओं के राज्यों से कन्याओं को उठा ले जाता था। इस पर देवताओं ने भगवान श्रीकृष्ण से इस राक्षस से निजात दिलाने की गुहार की। तब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर से युद्ध कर उसका वध किया और उसके द्वारा अपहृत सोलह हजार कन्याओं को मुक्त करवा द्वारका लाए। जब उन कन्याओं को राक्षस की कैद में रहने के कारण सम्मान नहीं मिलता दिखा, तो श्रीकृष्ण ने स्वयं उनसे विवाह कर उन्हें अपनी रानी स्वीकार किया। श्रीकृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध किया था और वे कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर द्वारका लौटे, तब द्वारका की प्रजा ने उनका स्वागत दीपमालिकाएं सजाकर किया। नरकासुर के वध के कारण ही दिवाली के एक दिन पहले मनाई जाने वाली रूप चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं।
राजा विक्रमादित्य के लिए

राजा विक्रमादित्य ज्ञानवान, दयावान और बहादुर राजा थे। उनका 56 ई.पू. राजतिलक किया गया। इस अवसर पर प्रजा ने राजा बनने की खुशी में राज्य के आनंद उत्सव मनाया। साथ ही, घर-घर में रात्रि में मिट्टी के दीपक प्रज्वलित किए गए। मान्यता है कि तभी से दिवाली की मनाई जाने लगी।
जैन धर्म में दिवाली

हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी दीपावली मनाने के अपने कारण हैं। जैन धर्म में इस दिन भगवान महावीर का निर्वाण होने के कारण बड़ा महत्व है। दरअसल, भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे और उन्होंने 15 अक्टूबर 527 बीसी कार्तिक अमावस्या की रात पावापुरी बिहार में निर्वाण लिया था। इस वजह से जैन धर्मावलंबी इस दिन वीर निर्वाण दिवस दीपावली पर्व के रूप में मनाते हैं।
सिख धर्म

सिख धर्म के लिए भी दिवाली का अपना महत्व है। माना जाता है कि कार्तिक अमावस्या के दिन 1577 में गुरु रामदास जी की इच्छा से अमृतसर में सिख धर्म के सबसे पावनधाम स्वर्ण मंदिर शिलान्यास किया गया था। इसके अलावा दिवाली पर ही सिख धर्म के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी 1619 मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से न सिर्फ आजाद किए गए, बल्कि उनको बावन अन्य राजाओं को आजाद कराने का श्रेय भी जाता है। ग्वालियर के किले से बाहर आने के बाद गुरु और अन्य लोग सीधे अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर गए थे। तब से लेकर अब तक सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन को मनाने के लिए पूरे स्वर्ण मंदिर को सजाया जाता है और सिख धर्म के लोग यहां विशेष पूजा करने के लिए आते हैं।
बौद्ध धर्म

भारत में तो बौद्ध धर्म के लोग दिवाली हिंदुओं की तरह ही मनाते हैं। अलबत्ता, नेपाल में बौद्ध धर्म के अनुयायी अन्य कारणों से दिवाली मनाते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन सम्राट अशोक ने राजपाट त्याग कर शांति और अहिंसा का पथ चुन बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। तब से इस दिन को अशोक विजय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सभी अनुयायी मंत्र जप कर भगवान बुद्ध को याद करते हैं।
मुस्लिम बादशाहों की दिवाली

जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में दिवाली मनाने के उल्लेख से जाहिर है कि दीपावली केवल हिन्दुओं का ही त्योहार नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों द्वारा भी इसे मनाया जाता रहा है। 14वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन तुगलक दिवाली मनाता था। मुस्लिम बादशाहों द्वारा दीपावली को धूमधाम से मनाने का उल्लेख कई जगह मिलता है। इनमें सबसे पहले बारी आती है बादशाह अकबर की। बताते हैं16वीं शताब्दी में अकबर धूम-धाम से दिवाली मनाता था।
इस दिन दिवाली दरबार सजता था और रामायण का पाठ और श्रीराम की अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन होता था। अकबर के बाद 17वीं शताब्दी में शाहजहां ने दिवाली की शान और भी बढ़ाई। वे इस मौके पर 56 राज्यों से अलग-अलग मिठाई मंगाकर 56 थाल सजाते थे। शाहजहां चालीस फुट ऊंचा दीप रोशन करवाता था, जिसे ‘आकाश दीया’ और ‘सूरजक्रांत’ कहा जाता था। इस दिन खूब आतिशबाजी भी होती थी। इस पर्व को पूरी तरह हिंदू तौर-तरीकों से मनाया जाता था। शाहजहां इस दिन भोज भी एकदम सात्विक बनवाता था।
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