मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट-17 ने परिवादी अमित कुमार बेनीवाल के इस्तगासे पर ७ जनवरी को बनीपार्क थाने को एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश दिए थे। परिवादी में मामले में आरोपी रह चुके भाजपा नेता और पूर्व मंत्री राजेन्द्र राठौड़ सहित जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील, शेर सिंह पूनियां और आरोपी रहे पुलिस अफसरों सहित एडवोकेट रोशन सिंह और ए.के.जैन पर अपनी मां को बयानों से पलटने के लिए बरगलाने और पैसे देकर दबाव बनाने व डऱा-धमकाने के आरोप लगाए थे। इनके साथ ही परिवाद में उसने दो न्यायिक अधिकारियों पर भी आरोपियों की मदद करने के आरोप लगाए थे लेकिन उन्हें आरोपी नहीं बनाया था।
बनीपार्क थाना पुलिस ने एसीएमएम-17 को पत्र लिखा था। पुलिस ने परिवाद मंे न्यायिक अधिकारियों का नाम होने और आरोपों के न्यायिक कार्यवाही से संबंधित होने,न्यायिक फैसले के बाद का आरोपित घटनाक्रम एक अवैध लेनदेने से संबंधित होने और अनुसंधान के योग्य नहीं होना बताया था । पुलिस के अनुसार परिवादी अमित कुमार ने कभी भी थाने में उपस्थित होकर कोई परिवाद नहीं दिया था और यदि उसने इस संबंध में इस्तगासे के साथ कोई शपथ पत्र दिया है तो यह झूठा है। मामले में न्यायिक अधिकारियों को नामजद किया है इसलिए पहले यह तय होना जरुरी है कि क्या एफआईआर कानूनी तौर पर सही है या नहीं ?
रिविजन में कहा था कि एसीएमएम कोर्ट ने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया। अमित कुमार ने कोर्ट के साथ धोखाधड़ी की है। न्यायिक कार्यवाही के संबंध में एफआईआर के आदेश नहीं दिए जा सकते। वकीलों पर मुकदमे में पैरवी करने के आधार पर ना कोई आरोप लगाए जा सकते हैं ना ही रिपोर्ट दर्ज हो सकती है। परिवादी ने घटनाक्रम चूरु जिले का बताया है इसलिए जयपुर की कोर्ट को आदेश देने का क्षेत्राधिकार नहीं था। ट्रायल कोर्ट से आरोपियों को बरी करने के आदेश के खिलाफ सीबीआई हाईकोर्ट में अपील कर चुकी है। इसलिए भी एसीएमएम कोर्ट को सुनवाई का कोई अधिकार नहीं है। परिवादी चाहे तो हाईकोर्ट में अपील की सुनवाई में अपनी बात कह सकता है लेकिन मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत नहीं कर सकता।